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घृणिभाष्यावचूरिः उ १३ सू०१७-१३
अन्यस्थानां कौतुकक मैकरणादिनिषेधः ३६५
सूत्रम्-जे भिक्खू अण्णउत्थियाणं वा गारत्थियाण वा कोउगकम्म करेइ करेंतं वा साइज्जइ ।। सू० १७॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वागारत्थियाण वा भूइंकम्मं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० १८ ॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० १९|| जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणापसिणं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० २० ॥ जे भिक्ख अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणं कहेई कहेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० २१॥ जे भिक्खू अण्णउत्यियाण वा गारत्थियाण वा पसिणापसिणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० २२॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा तोयं निमित्तं कहेइ कहेंतं वी साइज्जइ । सू०२३॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पडुप्पण्णं निमित्तं कहेइ कहते वा साइज्जइ ॥ सू० २४ ॥ जे भिखू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा आगमिस्सं निमित्तं कहेइ कहेंतं वा साइजइ । सू० २५॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण गारत्थियाण वा लक्षणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ।। सू० २६॥जे भिवखू अण्णउत्थियाण चा गारत्थियाण वा वंजणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० २७॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियांण वा सुमिणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जई। सू० २८॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा विज्जं पउंजइ पउज्जतं वा साइज्जइ ॥ सू० २९॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा मंतं पउंजइ पउंजंतं वा साइज्जइ ।। सू० ३०॥ जे भिवखू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा जोगं पउंजइ पउजंतं वा साइजइ॥ सू०३१॥
___ छाया-यो भिक्षुरन्ययूथिकानां वा गृहस्थानां वा कौतुककर्म करोति कुर्वन्तं वा स्वदते ॥ सू० १७॥ यो भिक्षुःअन्ययूथिकानां वा गृहस्थानां वा भूतिकर्म करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते ॥सू० १८॥ यो भिक्षुरन्ययूथिकानां वा गृहस्थानां वा प्रश्नं करोति कुर्वन्त