Book Title: Nishith Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 497
________________ जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिहवेत्ता तत्थेव आयमइ, आयमंतं वा साइज्जइ ।। जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिहवेत्ता अइदरे आयमइ आयमंतं वा साइज्जइ ।। •जे भिक्खू उच्चारपासवणं परिद्ववेत्ता परं तिण्डं नावापूराणं आयमइ आयमत वा साइज्जइ ॥१४॥ जे भिक्खू अपारिहारिए णं पारिहारियं वएज्जा-एहि अज्जो ! तुमं च अहं च एगो असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता, तो पच्छा पत्तेय पत्तेयं भोक्खामो वा पाहामो वा, जो तं एवं वयइ, वयंत वा साइजइ ॥१४॥ तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारहाणं उग्धाइयं ॥१४५।। । निसीहज्झयणे चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥४॥ ,

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