Book Title: Niryukti Sangraha
Author(s): Bhadrabahuswami, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 534
________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५११ m x ४9 प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं उद्धरिय प्रो. ८०७-३६४ उद्धरिय सव्व प्रो. ८०६-२६४ उनगस प्रो. ७४-३६१ उन्नंदमाण उत्त. ४११-४०४ उप्पत्तिमा प्राव. ९३८-१२ उप्पत्ती प्राव. ८८७-८७ उप्पज्जति प्राव. ७६३-७८ उप्पण्णमि प्राव. ३४१ ३३ , ५३६-५५ उपनविग्य दश. २७५-३५५ उप्पन्नाऽभू प्राव. ८८८-२७ उप्यायणाए पि. ५१४-३१३ उन्भट्टपरि पि. २८१-२९१ उन्भमिगा दश.८८-३३६ उन्भिज्ज पि. ६२४-३२३ उडिभन्ने पि. ३४८-२६८ उभो नह प्रो. २८-१९३ उभो वि दशा. ७५-४८३ उभयंमुहं प्रो. २५-३१६ उभयेऽपि पि. ४३२-३०५ उम्मग्ग प्राव. ११६६-११५ उम्हासेसो श्राव. १४९८-१६६ उम्मायं च प्राव.१४२८-१५७ उम्मुक्क प्राव.८२६-८१ उरगगिरि दश. १५७-३४२ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं उरि प्राव. ५०-१३६ उल्लो सुक्को आचा. २३२-४४२ उवएस प्रो. १२७-२०२ उवएस प्रो. ११८-२०१ उवयोग जोग आचा. १५१-४३५ ____" " ८४-४२८ पडु प्राव. ८९४-८८ , दिट्ठ प्राव. ६४६-६३ उवनोगं च प्रो. ३९६-२२७ उवप्रोगंमि पि. ११६-२७६ उवक्कमित्रो सू. ४७-४५९ उवगरणमि प्राव. ७८-१३८ उवगरण वा प्रो. ३१७-२१६ उवजीवि प्रो. ५४७-२४१ उवज्झायनमो प्राव. १००४-९८ १००५, १००६, १००७-६८ उवट्टणि पि. ६०३-३२१ उवट्टिया पि. ४२०-३०४ उवत्तण प्रो. ८५-१९८ उरभाउणाम उत्त.२४५-३८८ उवभोगपरि आव. सू. ७-१८० Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624