Book Title: Niryukti Sangraha
Author(s): Bhadrabahuswami, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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गाथानां अकारादिक्रमः ]]
[ ५१७
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प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं एवं पडिलेहण ओ.३२६-२२१ ,, वियाणि
प्राचा. १०४-४२९ ,, ससल्ल उत्त. २१९-३८५ ,, सामायारि
उत्त. ८१०-२६४ एरिसयं चिय पि. ४५८-३०८ एवक्कोय य प्राव. ७५९-७५ एवं उग्गम प्रो. २४९-२१३ ., एए प्राव. ७८४-७७ , एक्के पि. ६१७-३२२
। एगस्स प्रो. ५५२-२४१. ,, ककार प्राव.१०४२-१०२ ,, खलु प्रो. ८५-२६२ , खु अहं पि. ११५-२७६ •, खु सील
प्राव. ११३४-११२ " " " ओ. ७७-२६१ , गच्छ ओ. ११७-२०१ , गेल ओ. ८४-१९८ एवं च सुय दशा. ४७-४८१ एवं जाणंतेण प्रो. ७९६-२६३ ,, तवो प्राव. ५३८-५५ , ता कार ओ. ११५-२०१ " तु अव दश. १४२-३४१
प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं एवं तु इहं दश. ६३-३३४
, गवि पि. ५१३-३१३ ,, ,, पुव्व पि. ३५०-२६८ " , समणु
आचा. २८५-४४८ एवं नाणे उत्त.५६-३७० ,,पडि प्रो. २७८-२१६ ,, पकपि प्राचा. ५५-४२५
बद्ध० प्राव. १०३६-१०२ ,, भमरा दश. ६७-३३७ ,मए प्राव. ५-१०६ , मीस पि. २७५-२६१ एव य काल प्राव.३२-१३४ एवं रुइए प्रो. १५२-२०४ " लग्गं प्राचा.२३३-४४२ , लिङ्गेण पि. १५३-२८० ,, लेव प्रो. ३९५-२२७ ,, विगिचिउं प्रो.६१७-२४७ ,, विज्जा प्रो. ६०३-२४६ ,, विहा
प्राव. १४९१-९६६
प्रो. ६-२६५ एवमिणं प्रो. ७६२-२६० एवमणु प्राव.३५२-३५ एवं सउ दश. ६५-३३४
, वीर
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