Book Title: Niryukti Sangraha
Author(s): Bhadrabahuswami, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 561
________________ ५३८ ] आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जुंजण श्राव. १०३८-१०२ जुण्णमएहि श्रो. १३६-२०३ जुत्ती उ प्रो. ४०३-२२७ जुत्तीसुव्वरण दश. ३५४-३६३ जे अन्ने श्री. ७६६-२६१ जे अज्भयणे दश. ३५५-३६३ जे किर गुरु उत्त. ४ε४-४१३ चउ उत्त. ३१६-३६५ " 13 भव उत्त. ५५७-४१६ जे चेव पडि श्रो. ६३-१९६ जे जत्तिया श्री. ५३-१६५ जे जत्थ श्राव. १२०३ - ११९, १२०४ - ११९, ११८८-११८ जे जिरणवरा श्राचा. २२५-४४२ प्रो. ४४२-२३१ जे जह जेट्ठा कित्तिय श्राव. ६४६-६५ जेट्ठामूले प्रो. २८६ - २१७ जेरण जीवंती उत्त. १३० - ३७७ जेरण भिक्खं उत्त. १२३-३७६ जेरण रोहंति उत्तः १२५-३७६ जेरण व जं व दश. १३-३२६ जेणुद्धरिया आव. ७६६ - ७६ जेणुवगहिश्रो आव. १४४९-१६२ [ निर्युक्तिसंग्रहः श्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जेणे विस्तरियं आव. १३-१४५ जे तिव्व श्राचा. २०३-४३६ जे ते देवेहि श्राव. ५५७ - ५६ जे बायरा श्राचा. १६८-४३६ जे बायरपज्जत्ता श्राचा. ७६-४२७, ८६-४२८, १०६-४३० १२०-४३१, १४५-४३३ जे बंभचेर प्राव. ११२३-१११ जे भावा उत्त. ३८६-४०२ जे मंदरस्स श्राचा. ४६-४२४ जेवि न वा प्रो. ७५३-२५६ पि. ५०१-३१२ उत्त. ५२६-४१६ जे विज्ज जेसि तु जे सद्दरूव जे सिपि आव. ५-१४३ दश. ७५-३३५ जे सुत्तगुणा श्राव. १६-१३२ जेहि सविया प्रो. ६६७-२५४ जे हुंति उत्त. ५५८-४१९ जो इंदकेऊं उत्त. २७१-३९० जोइ पइवं जोइसतणो fa. ३०४-२६३ पि. ८७ - २७४ जोए कररणे दश. १७७-३४४ जोएण सू. १७७-४७३ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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