Book Title: Niryukti Sangraha
Author(s): Bhadrabahuswami, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 562
________________ गाथानां अकारादिक्रमः ] [ ५३९ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जो कन्नाइ प्राव. ७६८-७६ जो कोंचगा प्राव. ८६९-८५ जो गच्छं प्राव. १३६६-१५६ जोग्गा अजिष्ण पि.८६-२७४ जो गुज्झएहिं प्राव. ७६५-७५ जोगु वयोग उत्त. ४२६-४०६ जोगंमि उ प्रो. ६००-२४५ जोगे जोगे जिण प्रो. २७७-२१६ जोगो जोगो प्रो. २७६-२१६ जो चम उत्त. २७४-३६१ जो चेव प्र प्रो ६६४-२५१ जो चेव होइ प्राचा. ३३-४५३ जो णवि व प्राव. ८०३-७६ जोणिभूए प्राचा. १३८-४३३ जो जइया प्राचा. २७६-४४७ जो जह व प्रो. ४४६-२३१ जो जहवायं पि. १८६-२८३ जो जहियं सो प्राव. ५८-१३६ जो जाहे प्राव. १२५६- १२५ जो जीवो सू. १४५-४७० जो तिहि प्राव. ८७२-८५ जो तेसु दश. ६५-३३७ जो निच्च प्राव.९३६-९२ जो पुढवि प्राचा. १०२-४२६ प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ जो पुण करणे प्राव. ३०-१३३ जो पुरण वीसा पि. २६-२६८ जो पुरण हवेज्ज प्रो. ५६४-२४२ जो पुण हिंसाय ओ.५८-१९५ जो पुत्वि उद्दिट्टो - दश. २४५-३५२ ___" , , दश. २६३-३५७ जोमणुएहिं प्राव. ६६-१३७ जो मागहरो प्रो. १३-२५६ जो भिक्खू दश. ३५६- ३६३ जो य तवो प्राव. ५२७-५४ जो य पोगं प्रो.७५५-२५६ जो य पमत्तो प्रो. ७५२-२५६ जो वच्चंतमि प्रो. ५२-२५० जो सन्निवाइनो उत्त. ५१-३६९ , उत्त. ५३-३७० जो समो प्राव. ७६८-७८ जो सम्वसिप्प प्राव. ९३०-९१ " ,कम्म प्राव. ९२६-६१ जो सोअरिट्र उत्त. ४४७-४०८ जो सो नमि उत्त. २६७-३६० जो हज्ज उप्राव.१५३४-१७१ " प्राव. १३८१-१५५ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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