Book Title: Niryukti Sangraha
Author(s): Bhadrabahuswami, Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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गाथानां अकारादिक्रमः ]
[ ५१५
आद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठ एगस्स दुण्ह
प्राचा. १४२-४३३ एगस्स माण पि. ३२८-२९६ एहिमपारत्त प्रो. ६२--१९६ एगं किर प्राव. ५२९-५४ एंगं पडुच्च प्राव. ८९९-८८ एगतेण प्रो० ५५-१६५ एगंतरिए प्राचा २३-४२२ एगंतमणा प्रो ५६५-६६-२४५
, प्रो. ६०४-२४६ एगंतपसत्था उत्त. २३३-३८७ एगंतमव पि. २११-२८५ एगं पायं प्रो. ७६-२५२ एगागि प्रो. ७२-१६७ एगा जोपण पाव. ९६२-६४ एगा य होइ प्राव.६७३-९५ एगाहिरण प्राव. २१७-२२ एगिदियदेवाणं सू. १७३-४७२ एगिदियसुह प्राव. १-१४० एगणतीस उत्त. २५-३६७ एगेंदियनो प्राव. २-१३१ एगेण वावि पि. ६१२-३२२ एगो काो प्राव.१४५८-१६३ एगो य सत्त प्राव. ४१३-४१ एगो भगवं प्राव. २२४-२३
प्राद्यांश ग्रन्थ-गाथांक पृष्ठं एगो भगवं प्राव. ३०८-३० एगो दवस्स पि. ६५३-३२६ एगो व अणेगो प्रो. ५-१६१ एतं महि प्राव. ५६२-५७ एत्थ तु प्रण दशा. ६५-४८२ " , पणगं दशा. ६७-४८३ , य थल श्राव. ६३-१३७ , य भणिज्ज दश.६८-३३७ एत्थ उ जिण प्राव. ७१७-७१ ,, ,, तइय पि. ६५४-३२६ ,, पढमो प्राव. १५४०-१७३
पुण अहि प्राव.७३३-७२ " " सू. १५७-४७१ , ,सं प्रो. २१-११२ एत्ताई प्राव. ११४३-११३ एत्ते उ प्रो. २७०-२१५
अकारण प्रो. १२०-२०१ एते चेव सू. ६१-४६१ एतेसि नि प्राव. २८६-६ एत्तो किणाइ पि. ६४३ -३२५ " गुरु दशा. १२७-४८८ " सल्लुद्ध प्रो. ७६२-२६३ एगभविय सू. १८६-४७४ एमेव पर प्राव. २६४-२६ "अहा प्रो. ११०-२००
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