Book Title: Nirtivad
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satya Sandesh Karyalay

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Page 4
________________ प्रकाशक के दो शब्द, HAATAN ज्य सत्यभक्तजी ने कुछ समय पहिले सत्यसमाज की इक्कीस मागे जनता के सामने । रक्खी थी। इन मांगोपर आचार्य महावीर प्रसादजी द्विवेदी, देशभक्त प सुन्दरलालजी, श्री Ma किशोरलालजी मशरूवाला, श्री धर्माधिकारी, श्री जनरल अवारी, वारासभाओ के कुछ WAR सदस्य तथा अन्य सज्जनो ने अपने अपने मत प्रगट किये थे । तव आवश्यकता मालूम हुई कि मागो का भाष्य किया जाय । जब वह किया गया तब निरतिवाद के नाम से एक बाट, तथा एक पुस्तक ही तैयार हो गई जो आपके सामने है। जिसे आज साम्यवाद या समाजवाद कहते है वह इसमे नही है पर जो कुछ है वह समाजवाद के उद्देश को पूरा कहता है । इसरिये पूज्य सत्यभक्तजी ने यह ठीक ही कहा है कि यह समाजवाद की आत्मा का भारतीय अवतार है। यह योजना देश के ही नही, विश्व के सामने एक नई साफ और व्यावहारिक योजना है जो धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक आदि क्षेत्रो मे पथ-निर्माण करती है। सत्यसमाज की संस्थापना के बाद श्री सत्यभक्तजी को यह अनुभव हो रहा था कि आज के युग मे:राजनीति और अर्थ शास्त्र पर प्रभाव डाले बिना अन्य क्षेत्रो मे सुधार कठिन है । क्रान्ति या सुधार एकागी नही होता वह अपना असर चारो तरफ डालता है । श्री सत्यभक्तजी धर्म और रातनीति को समाज-शास्त्र का ही एक अग मानते है इसलिये यह कैसे हो सकता था कि सत्यसमाज इन विषयो पर अपना कोई सन्देश जगत के सामने न रक्खे । श्री सत्यभक्तजी जो साहित्य निर्माण कर रहे है वह पूर्ण निःपक्ष और अमर है सत्य और अहिंसा के व्यावहारिक रूपो की मूर्ति है जनकल्याण का सुगम और साफ रास्ता है। पर इसे अच्छी तरह समझने की जीवन मे उतारने की और उसके लिये नि स्वार्थ सगठन की आवश्यकता है । इसके लिये हम आप सबको प्रयत्न करना चाहिये । -सूरजचंद डॉगी प्रकाशक, -सूरजचंद डॉगी सत्य सन्देश कार्यालय वर्धा सी पी. . मुद्रक, -मै ने जर सत्येश्वर प्रिन्टिंग प्रेस वर्धा सी. पी.

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