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आचार्य रत्न कीर्तिरत्नसूरि और उनकी रचनाऐं
(ले० -- अगरचन्द नाहटा )
आचार्य कीर्तिरत्नसूरि महान विद्वान और त्यागी वैरागी सन्त पुरुष ये । वे पञ्च- परमेष्ठि मे गौरवशाली तृतीय आचार्यपद धारक शान्तमूर्ति प्रभावशाली महापुरुष और खरतरगच्छ रूपी गगनाङ्गण के ज्वाज्वल्यमान नक्षत्र थे । आप शिप्य वर्ग को अध्ययन कराने में सिद्ध हस्त उपाध्याय, गच्छ भेद वितण्डा से दूर और गच्छनायक को गच्छ, घुरा, धारण में एक कुशल सहयोगी थे । आपका प्रस्तुत नेमिनाथ महाकाव्य सृजन सौष्ठव और प्रासाद युक्त एक सफल प्रेरणास्पद मन्य है जिसके साथ आपका परिचय यहाँ देना आवश्यक है ।
वश परिचय -- ओसवाल ज्ञाति मे कोचर साह बडे नामाकित पुरुष हुए हैं । वे सखवाली नगरी के अधिवासी थे अत आपके वशज सखवाल, संखवालेचा या संखलेचा गोत्र नाम सेप्रसिद्ध हुए । कोचर साह ने वहाँ ऋषभदेव भगवान का मन्दिर बनवाया, अनेक तीर्थों के सघ निकाले थे जिनका वर्णन कोचर व्यवहारी रास' तथा अन्यत्र भी कई वंशावलियो आदि मे मिलता हैं । कोचर शाह की लघु भार्या के पुत्र सा० रोला और मूला थे । उनके पुत्र सा० आपमल्ल और देपमल्ल हुए। देपमल की भार्या का नाम देवलदेवी था । उनके और १ लाखा२मादा ३ केल्हा और४देल्हा चार पुत्र थे । यह वश वडा समृद्धिशाली था । इन्हे सात पीढी तक लक्ष्मी स्थिर रहने का वरदान था । चतुर्थ पुत्र देल्हा ही हमारे चरित्रनायक थे । इनका जन्म संवत् १४४६ चैत्र सुदि ८ शुक्रवार के दिन वीरमपुर- महेवा मे हुआ । आप बडे रूपवान और विचक्षण बुद्धि वाले थे अत अल्पकाल ही अच्छा विद्याध्ययन कर लिया था । मातापिता ने इनकी सगाई १३ वर्ष की अवस्था में ही राजद्रह में की थी । विवाह के लिए बरात सजाकर आये और गाँव के बाहर ठहरे । मध्यान्ह मे जब सभी