Book Title: Neminath Mahakavyam
Author(s): Kirtiratnasuri, Satyavrat
Publisher: Agarchand Nahta

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Page 11
________________ पाठ प्रकाश में आये हैं । बीकानेर-प्रति का पाठ निसन्देह अधिक प्रामाणिक तथा मान्य है । जिन पाठो को लेकर हर्षविजय ने व्यर्थ खीचतान की है और काव्यार्थ के प्रकाशन के स्थान पर उसका सगोपन किया है, उन स्थलो पर महिमामक्ति ज्ञान-भण्डार की हस्तप्रति शुद्ध पाठ प्रस्तुत करती है। काव्य के प्रासगिक पद्यो से विदित होगा कि 'तुषारभूषाशुकभूषिताग' की अपेक्षा पारनाकापताग को 'तुषारचोक्षाशुकभूषिताग' (३.८), 'स्वयूथनाथ रिव' के स्थान पर 'स्वयूथनागैरिव' (३/६), 'स्वस्थाम्मसीव' की बजाय 'स्वच्छाम्भसीव' (४/४०), 'ननु वत्सला' की अपेक्षा 'सुत वत्सला' (६/३८), 'ललनदोलनयोहज' की तुलना में 'ललनदोलनदोहज' (८/२८1, 'विनयभक्तिमानद' के स्थान पर 'विनयभक्ति वामन ' (१२/२४), 'यशासि विचरन्ति' की अपेक्षा 'यशासि विसरन्ति' (१२/४५) पाठ अधिक सठीक, सार्थक तथा प्रसग-सम्मत हैं। तुलनात्मक दृष्टि से हमने जिस पाठ - को स्वीकार किया है, उसे काव्य के कलेवर मे रखा है, पाठान्तर का उल्लेख, उमके स्रोत के निर्देश-सहित, पाद-टिप्पणी मे किया है। उक्त आधारभूत स्रोतो मे पूर्ण साम्य होने पर भी हमने कतिपय अन्य चिन्त्य पाठो का सशोधन करने का साहस किया है । सशोधित पाठ कितने सार्थक हैं, इसका निर्णय विद्वान् पाठक करें। किन्तु वे प्रसग में मूल पाठ की अपेक्षा अधिक उपयुक्त तथा अर्थवान् हैं, इसमे सन्देह नही । इस प्रकार नेमिनाथमहाकाव्य का समीक्षित पाठ यहाँ प्रथम बार प्रस्तुत किया गया है । फलत वर्तमान सस्करण का पाठ पूर्ववर्ती सस्करणो की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय है । असस्कृतज्ञ पाठक भी काव्य का रसास्वादन कर सके, इसलिये इसका हिन्दी मे अविकल अनुवाद किया है। अनुवाद दुस्साध्य कार्य है । मूल भाव को, उसके समूचे सौन्दर्य के साथ, अनुवाद मे उतारना कठिन है। सस्कृत-काव्य की भाव-सम्पदा को हिन्दी मे व्यक्त करते समय यह कठिनाई और भी बढ जाती है, क्योकि दोनो भाषामो की मूल प्रकृति भिन्न है । हमने मूल के निकट रह कर उसके काव्य-सौन्दर्य को ल्पान्तरित करने का यथाशक्य प्रयत्न किया है । फिर भी श्लेषो तथा विरोधाभासो की मात्मा अनुवाद में पूर्णतया विम्बित हो गयी है, यह दावा करना साहसपूर्ण

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