Book Title: Nalvilasnatakam
Author(s): Ramchandrasuri, Vijayendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 74
________________ तृतीयोऽङ्कः [ ५७ ( राजा किमपि पत्रके लिखित्वा समर्पयति ) दमयन्ती- 'कपिञ्जले ! कहिं वणोद्द से वियइल्लवल्लियाओ चिट्ठति ? मकरिका- 'एदस्सि सहयारनिगुञ्चे। (दमयन्ती पुष्पावचयं नाटयति) राजा-(उपसृत्य ) अलमलमनुचिताचरणेन । ननु ललाटन्तपे भगवति कमलिनीनाथे परमानुरागवेतनक्रीते च सविधभाजि सर्वकर्मीणे जने कोऽयं स्वयं विचकिलकलिकावचयक्लेशोपद्रवः १ दमयन्ती-(तिर्यग् विलोक्य स्वगतम् ) कहमेस सयं भयवं पंचबाणो ? अहवा वरायस्स अणंगस्स कुदो ईदिसो अंगसोहग्गपब्भारो ? ता कदत्थो दमयंतीए अंगचंगिमा । (प्रकाशम् ) कविजले ! को एस मं वारेइ ? कपिञ्जला- जस्स कदे तुमं इध समागदा ? दमयन्ती- 'कस्स कदे अहं इध समागदा । १. कपिञ्जले ! कस्मिन् वनोद्देशे विचकिलवल्ल्यस्तिष्ठन्ति ? २. एतस्मिन् सहकारनिकुञ्ज । ३. कथमेष स्वयं भगवान् पंचबाण: ? अथवा वराकस्यानङ्गस्य कुत ईदृशोऽङ्गसौभाग्यप्राग्भारः ? तत् कृतार्थं दमयन्त्या अङ्गचङ्गत्वम् । कपिलले ! क एष मां वारयति ? ४. यस्य कृते त्वमत्र समागता । ५. कस्य कृतेऽहमत्र समागता? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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