Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 02
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 13
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात तिणसूं भरीजै, पाखती 4. 8 कोटड़ो, छहोटणरा भाखरांरो' पांणी प्रावे च्यांरू तरफ भाखर छै, नै बीच ऊंडाळ छै । कोस ३ बीच पांणीसूं भरीजै, तद दस पनरै वांस पांणी चढे । पांणी निकलणरी ठोड़ को नहीं" । सवळो भरीजै तद हासल इजाफा हुवै' । काठा गोहूँ मण १५००० बीज बावै तिकै साठा नीपजै । बीज बावै तितरो भोग वै' । बीजी लागत घणी छै" । पांणी घटै तद मांहै बेरी दोय सौ, च्यारस आखारी सी हुवै छै । ऊपर छोतरा, गोंहू, तरकारी हुवै । पांणी मीठो । विणां," फागुणिया मूंग, जवार, सेलड़ी सोह हुवै । तिण ऊपर गांव १२ बांभणांरा 14 छै । हैंसा ५, दोढवाड़ कूंतो " । 10 11 12 3 I 5 गांवांरी विगत १ खींवो । १ थुळाया । १ बोधरी । १ दमोदर । १ गलापड़ी । १ सेलावट । १ कुंभाररो कोट । १ नीनरिया | १ जाळिया । १ घांमट । - १२ ५ १ नीभिया । १ जिगिया । मुहारारैं खड़ीणरो उनाव " जैसलमेरसूं कोस ६ तथा ७ दिखनूं बड़ी ठोड़ कोस ५ मांहै उनाव भरीजै । पाखतीरा भाखरांरो पांरणी आवै । मांहै गोहूं मण ५००० बीज वहै तितरो भोग अखै 1 " । पांणी निठ जदी वेरा" मांहै २० तथा २५ बंधायोड़ा, पांणी घणो मीठो । तिणां कोसीटां" गोहूँ, छोतरा, तरकारी, सेलड़ी हुवै । वड़ी हासलरी ठोड़ | तिण ऊपर गांव ३ बांभणांरा .18 20 21 I पहाड़ोंका 12 जिससे । 3 पास में 1 4 और बीचकी भूमि गहरी (ऊंडी) है | 5 बीचकी उस भूमिका भाग ३ कोस तक भर जाता है तब उसकी गहराई दससे. १५ बांस तक हो जाती है। 6 पानी निकलनेकी जगह कहीं नहीं है । 7 खूव भर जाता है तब हासिल अधिक आता है । 8 १५००० मन काठे - गेहूलका बीज बोया जाता है जो सांठा (साठ गुना ) उत्पन्न होता है । 9 जितना वीज बोया जाता है उतने ही भोग के ( एक करके) रूपमें गेहूँ प्राप्त होते हैं । 10 दूसरे करोंकी आमदनी भी बहुत है । 11 जब पानी घट जाता है तव उसमें दोसौ-चारसौ कुंइयोंसे सिंचाई होती है । 12 कपास । 13 सब । 14 ब्राह्मणोंके । IS ड्योढा कूंता (अनुमानित उपज) किया जाकर उसका पांचवां भाग लिया जाता है | 16 एक जल-स्थानका नाम । 17 उसमें ५००० मन गेहूँ वोये जाते हैं और इतना ही भोग आता है । 18 खतम हो जाता है । 19 कुए । 20 चरसे द्वारा सिचाई किये जाने वाले कुए । 21 गन्ना ।

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