Book Title: Mrutyu Se Mulakat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 16
________________ तो प्रभु के घर से वही सड़ियल अनाज मिलेगा। अरे भाई, जब देना ही है, तो अच्छा देओ न। अगले की दुआएँ दिल से मिलेंगी। महर्षि उद्दालक यज्ञ के बाद ब्राह्मणों को दान देने लगे। उन्होंने अपनी बूढी, बिन उपयोगी गायें दान देनी शुरू कर दी। महर्षि उद्दालक के एक ज्ञानसंपन्न पुत्र थे - नचिकेता। इस तरह का गौ-दान देखकर नचिकेता के मन में विचार आने लगा कि ऐसी अपाहिज-अनुपयोगी गायें देकर उसके पिता किस महान फल की प्राप्ति की आकांक्षा कर रहे हैं। इन कमजोर गायों के दान से तो उनका इस यज्ञ से अर्जित सारा पुण्य समाप्त हो जाएगा। नचिकेता ने अपनी ओर से पिता को संबोधित करते हुए कहा, 'पिताश्री, यह आपके लिए उचित नहीं है। आपको श्रेष्ठ का दान करना चाहिए।' कोई पुत्र पिता को कुछ समझाने का प्रयास करे, तो यह पिता को अच्छा नहीं लगेगा। शिष्य गुरु को ज्ञान देने लगे, तो यह तो उलटी गंगा बहना हो गया। उद्दालक को भी पुत्र की बात अच्छी न लगी। ___ पुत्र ने पिता को समझाना चाहा, 'पिताश्री ! यज्ञ का नियम यह होता है कि पूर्णाहुति के बाद सर्वश्रेष्ठ चीजों का दान दिया जाए; इसलिए आपको अपनी सर्वश्रेष्ठ गायों का ही दान देना चाहिए।' पिता कहते हैं, 'सर्वश्रेष्ठ तो तुम भी हो।' पुत्र ने कहा, 'फिर तो आप मुझे भी दान कर दीजिए।' पिता ने फिर पूछा, 'क्या तुम्हें दान में दे दूँ?' नचिकेता ने कहा, 'हाँ, आप मुझे सर्वश्रेष्ठ मानते हैं तो मुझे भी नि:संकोच दान में दे दीजिए।' पिता ने आवेश में आकर कहा, 'तो फिर जाओ, मैं तुम्हें मृत्यु को देता हूँ।' नचिकेता स्तब्ध रह जाते हैं, पर पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वे वहाँ से यमलोक चले जाते हैं। यमराज से उनकी कई विषयों पर चर्चा होती है। कठोपनिषद् और कुछ नहीं, यमराज का नचिकेता के साथ हुआ विशिष्ट संवाद ही है। उनके संवाद में से हम अपने जीवन के लिए, कल्याण के लिए ज्ञान की कोईन-कोई किरण ढूँढ़ने व उस किरण से अपना जीवन रोशन करने का प्रयास करेंगे। __कठोपनिषद् की शुरुआत होती है शांति पाठ से। इसका शुभारंभ ॐ से होता है। ॐ भारतीय संस्कृति का सबसे पवित्र शब्द है। ईश्वर की अभिव्यक्ति वाला शब्द है। ब्रह्म को व्यक्त करने वाला शब्द है। किसी को भी ब्रह्म-तत्त्व को अपने लिए आमन्त्रित करना हो, तो इसके लिए एक ही शब्द है - ॐ। ॐ का उद्घोष, ॐ की अनुगूंज, ॐ का जप, ॐ का स्मरण, ॐ का ध्यान। एक प्रकार से ॐ ब्रह्म-तत्त्व का ही ध्यान करना है। 15 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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