________________
है, लेकिन यह बहुत सारे रहस्यों को अपने में समेटे हुए है। यह तो सागर को गागर में लिए हुए है। कबीर कहते हैं, समुन्द समाना बूंद में। ज्ञान का पूरा सागर एक बूंद में आ गया है। कठोपनिषद् ऐसा ही है।
कठोपनिषद् कोई उपदेश नहीं है, कोई व्याख्या नहीं है, यह किसी गीता का गायन नहीं है। यह तो संवाद है, आत्म-संवाद। पुराने ज़माने में जो भी शास्त्र रचे जाते थे, उनको सहज रूप में कैसे कहा जाए, उन्हें सहज रूप से शिष्यों के अंतर्मन में कैसे उतारा जाए, इसके लिए गुरु-शिष्य के मध्य संवाद हुआ करते थे। गीता में कृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ संवाद है। योग-वशिष्ठ जनक और वशिष्ठ के बीच का संवाद है। अष्टावक्र गीता जनक और महर्षि अष्टावक्र के बीच हुआ संवाद है। भगवती सूत्र महावीर और गौतम के बीच के संवाद को लिए हुए है। ऐसे ही कठोपनिषद भी एक संवाद है, नचिकेता और यमराज के बीच का संवाद, एक ख़ास अंतरंगीय वार्तालाप का शास्त्र।
किसी भी तत्त्व का जन्म होता है तो उससे पहले कोई-न-कोई घटना घटित होती है, कोई-न-कोई ऐसा निमित्त बनता है जिसके कारण किसी तत्त्व को साकार होने का बीजारोपण होता है। किसी समय एक महान ऋषि हुए, महर्षि उद्दालक। उद्दालक गौतम वंश के वाजश्रवा के पुत्र थे। पहले ज़माने में ऋषि-मुनि विवाह करते थे, उनके संतानें भी होती थीं। धीरे-धीरे समाज में ऐसे संस्कार पड़े कि संन्यासी वही बने, जो विवाह न करे।
कहते हैं, महर्षि उद्दालक ने विश्वजित नाम का यज्ञ किया। जब भी किसी इंसान के मन में किसी ख़ास चीज़ को प्राप्त करने की तमन्ना जगती है, तो वह धर्म की शरण में जाता है। वह इसके लिए यज्ञ का आयोजन करता है। ऋषि-मुनियों के पास जाकर आशीर्वाद लेता है। उद्दालक ने भी यही किया।
__ जिस यज्ञ को करने के बाद इंसान दुनिया का दिल जीत सके, उस यज्ञ का नाम है, विश्वजित यज्ञ। यज्ञ की पूर्णाहुति पर परंपरा है कि यज्ञ में आए ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दी जाती है। ऋषि उद्दालक ने भी यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद दानदक्षिणा देना प्रारंभ किया। दान हमेशा उन्हीं चीजों का किया जाता है, जो सर्वश्रेष्ठ हों। या तो दान दिया ही न जाए, लेकिन दान देने का फैसला कर ही लिया है, तो हमें अपनी श्रेष्ठ वस्तुओं का ही दान देना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति अनुपयोगी वस्तुओं का दान देगा, तो अच्छा होने की बजाय विपरीत परिणाम मिलेगा। आखिर लौट कर वही तो आएगा जैसा बीज हमने बोया है। सड़ियल अनाज का दान दोगे,
14
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org