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उपनिषद् हमारे लिए अध्यात्म की ऐसी ही गंगा है। ऋषि-मुनियों का समग्र चिंतन उपनिषदों के रूप में हमें उपलब्ध है।
उपनिषदों का ज्ञान सागर की भाँति विशाल है। जैसे पृथ्वी विशाल है, वैसे ही उपनिषद् भी विशाल हैं। हम उन उपनिषदों में से एक खास उपनिषद् का चयन अपने लिए कर रहे हैं। इसका नाम है : कठोपनिषद् । यह एक दिव्य शास्त्र है। बड़ी गहराई है इसमें। बड़े रहस्य छिपे हैं इसमें। यह सागर की तरह गहरा है
और हिमालय की तरह ऊँचा। अध्यात्म की बड़ी बारीकियाँ हैं इसमें। आपको खूब मज़ा आएगा इसमें । ऐसा लगेगा कि मानो हम किसी शास्त्र से रू-ब-रू नहीं हो रहे हैं, बल्कि अपने-आप से मुलाकात कर रहे हैं।
वैसे भी जीवन की पूरी मुलाक़ात केवल जीवन के तल पर नहीं होती, पूरी मुलाकात के लिए हमें मृत्यु से भी मुलाकात करनी होगी, क्योंकि मृत्यु जीवन का उपसंहार है। लोग मृत्यु का नाम सुनते ही घबराते हैं। कठोपनिषद् तो मृत्यु से मुलाकात ही है। मृत्यु से अगर एक बार सही तौर पर मुलाकात हो जाए, तो शेष बचे जीवन को जीने का मज़ा ही कुछ और होगा। तब हम मृण्मय को नहीं, चिन्मय को जिएँगे। मिट्टी को नहीं, फूलों को और फूलों की सुवास को जिएँगे।
दुनिया में कुछ शास्त्र ऐसे भी होते हैं जिनका चिंतन सार्वजनिक स्थलों पर बैठकर किया जाता है। कुछ शास्त्र, ग्रंथ ऐसे होते हैं जिन पर चिंतन-मनन गिनेचुने लोगों के बीच बैठकर हो सकता है। ऐसे उपनिषदों पर चिंतन-मनन, उनकी व्याख्या करने के लिए पात्रता चाहिए। कठोपनिषद् भी ऐसा ही उपनिषद् है। यह सुनने का नहीं, आँखें मूंदकर पीने का शास्त्र है। इस पर चिंतन केवल आपकी भलाई के लिए नही कर रहा हूँ, आपके साथ मैं भी इसका आनंद लूँगा। इसे आकंठ पीऊँगा। और तब जो घुघरू बजेंगे, उनकी खनक धरती पर फिर से किसी मीरा को बुलाएगी, किसी सूर का इकतारा बजाएगी, किसी कबीर से रसभीनी चदरिया बुनवाएगी, किसी तुलसी से चित्रकूट के घाट पर चंदन घिसवाएगी। तब दुनिया खुद ही गा उठेगी - पग धुंघरू बाँध मीरा नाची रे...!
बस, पात्रता चाहिए। बगैर पात्रता किसी के हाथ अमृत भी आ जाए, तो कारगर न होगा। दानवों के हाथ अमृत आ जाएगा तो वे अमर तो हो जाएँगे, लेकिन उनकी अमरता दुनिया के लिए परेशानी का सबब बन जाएगी। राम अगर अमृत पीते हैं, तो दुनिया का कल्याण होगा। रावण अमृत पी जाएगा, तो उसका अहंकार और घमंड और परवान चढ़ जाएगा। वह फिर से किसी सती के अपहरण का दुस्साहस कर बैठेगा।
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