Book Title: Mantra Mahodadhi Granth
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Page 496
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org मं०म० 217 // यस्यामिति // उक्ततिथौकरणासंभवेसर्वथाश्रावणेपवित्रपूजा / / चैत्रेदमनार्चाचनित्यत्वेनावश्यकार्येत्यर्थः॥ // 86 // 87 // 88 // अन्येष्वपीति // उपरागश्चंद्रसूर्यग्रहणम् // अर्धोदयलक्षणंतु॥अमार्कःश्रवणपातोमध्ये चेत्पौषमाघयोः॥ अर्धोदयाभिधोयोगःकोटिसूर्यग्रहाधिकइति // सौम्यायनंमकरसंक्रांतिः॥ आदिशब्दा यस्यांकस्यांतिथौकुर्य्यात्तिथाबुक्तकृतंनचेत् // सर्वथाश्रावणेचैवपवित्रंतुनिवेदयेत् // 86 // प्रत्यब्दं यःपवित्रेणपूजांकुर्वीतदैवते॥ ऐश्वर्यारोग्यसंयुक्तोनेकवर्षाणिजीवति // 87 // संपूर्णहायनपूजादेवता नांकृतातुया // सर्वासंपूर्णतामेतिपवित्रदमनार्पणात् // 88 // अन्येष्वप्युपरागार्योदयसौम्यायनादि षु // कुर्यादलभ्ययोगेषुविशेषाद्देवतार्चनम् // 89 // यथायथेष्टदेवेषुनृणांभक्तिःसमेधते // प्राप्यतेत दयत्नेनमनोभीष्टंतथातथा // 90 // शुचौतत्तदहेकुर्य्यादेवप्रस्वापनोत्सवम् // उर्जेतथैवदेवानामुत्था पनविधिसुधीः // 91 // BOM217 // द्युगादयोमन्वादय श्रवणद्वादशीप्रमुखाग्राह्याः // तवेष्टदेवमहोत्सवोमहापूजाचविधेया // 89 // तत्रहेतु माह // यथेति // 90 // शुचावाषाढेतत्तदहेचतुर्थ्यादीगणेशादीनाम् // उर्जेकार्तिके // 91 // For Private and Personal Use Only

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