Book Title: Mantra Mahodadhi Granth
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Bdm24 // तदृतंबिंदुषट्कांकितवायुमंडलम् // 25 // मुद्राआह // सरोरुहमिति // सरोरुहंपद्ममुद्रा॥ सायथा // करौद्वौसंमुखौकृत्वासंहतावुन्नतोपुनः // अंगुलीप्रसृतामध्ये गुष्ठौपद्मास्यमुद्रिकेति // पाशमुद्रायथा // तर्ज नीमध्यमेवामेऊर्ध्वमुख्यौविधायच // दक्षिणे द्वेअधोमुख्यौसंमुख्यौचपरस्परम् ॥पाशमुद्राभवेदेषामिथः संपीडनेतयोरिति // गदामुद्रायथा // अन्योन्याभिमुखौकृत्वाहस्तोतुग्रथितावुभौ // अंगुष्ठीमध्यमेतद्वत्संयु जलस्यमंडलंप्रोक्तंप्रशस्तंशांतिकर्मणि // त्रिकोणस्वस्तिकोपेतंवश्येवढेस्तुमंडलम् // 24 // चतुरस्त्रं वज्रयुक्तस्तंभेभूमेस्तुमंडलम् // वृतंदिवस्तद्विद्वेषविंदुषद्कांकितंतुतम् // 25 ॥वायुमंडलमुच्चाटेमा | रणेवह्निमंडलम् // सरोरुहपाशगदेमुशलंकुलिशंत्वसिः॥२६॥ क्तेसुप्रसारिते // गदामुद्रेयमुदितादर्शिताविघ्नहारिणीति // मुशलमुद्रोक्ता // कुलिशवजमुद्रा // साय था॥ कनिष्ठांगुष्ठयुङ्मुद्रात्रिकोणात्वशनेर्मतेति // अशनेर्वजस्यकनिष्ठांगुष्ठयोगादन्यासांप्रसारणात्रिकोणे Salत्यर्थः॥ असिम्खड्गमुद्रा // सायथा // ऊर्ध्वस्यवामहस्तस्यतर्जन्याचंगुलित्रयम् // प्रसार्ययोजयेदन्योमिथों गुष्ठकनिष्ठिके // खड्गमुद्रेयमुदितासर्वशत्रुनिकृतनीति // 26 // For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545