Book Title: Mantra Mahodadhi Granth
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म० विप्रस्वरूपमाह // अतिशुद्धति // 52 // उक्तबाह्मणभोजनेअभिचारोत्थमनःपापनश्यति // तस्मादुत्तमाद्वि जाभोज्याः॥ 53 // 54 // लेखनद्रव्यमाह // चंदनमिति ॥रात्रिहरिद्रासास्तंभनेलेखनद्रव्यम् // अष्टांव 231 // त्रिगुणद्वेषणोच्चाटेमारणेहोमसमितम् // अतिशुद्धकुलोत्पन्नाःसांगवेदविदोऽमलाः॥५२॥ सदाचारर ताविप्राभोज्याभोज्यैर्मनोहरैः॥ पूज्यास्तेदेवताबुयानमस्कार्याःपुनःपुनः॥५३॥ संतोष्यामधुरै क्यिौर्हिरण्यादिप्रदानतः॥ अचिराल्लभतेभीष्टंगृहीतायांतदाशिषि // 54 // एनोभिचारकर्मोत्थंन श्यतिद्विजवाक्यतः॥ चंदनंरोचनारात्रिगृहधूमश्चिताभवः // 55 // अंगारोष्ठविषाणीतिशांत्यादौयं त्रलेखने // पूर्वोक्तंलेखनद्रव्यंगृह्णीयात्तदपिध्रुवम् // 56 // पिप्पलीमरिचंशुंठीश्येनविष्टाचचित्रकः॥ गृहधूमोन्मत्तरसोलवणंचविषाष्टकम् // 17 // शांतावश्येलिखेद्भूर्जेस्तंभनेद्वीपिचर्मणि // खरचर्मणिवि द्वेषउच्चाटेध्वजवाससि // 28 // तषाणिमारणे // पूर्वोक्तंयंत्रतरंगोक्तंलेखनद्रव्यंतदपितत्तत्कामनयाग्राह्यम् // 55 // 56 // अष्टविषाण्याह / पिप्पलीति // 57 // लेखनद्रव्यप्रसंगाल्लेखनाधारमाह // शांताविति // 58 // For Private and Personal Use Only

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