Book Title: Mantra Mahodadhi Granth
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Salm 122 // 123 // 124 // 125 // ग्रंथातआशिषआह // अविच्छिन्नोति ॥१२६।।१२७॥श्लोकत्रयेणदेवंप्रार्थयते // नरसिंहइति॥नृसिंहोमेमुदेहर्षायास्तु // देवानामावरेणसमूहेननतः॥१२८॥नृसिंहइति / नृसिंहोमांसदाऽ तत्तनूजोरामभक्त फनूभट्टाभिधोऽभवत्।महीधरस्तदुत्पत्र संसारासारतांविदन् १२२निजदेशंपरित्यज्यग तोवाराणशीपुरीम्।सेवमानोनरहरितंत्रग्रंथमिमव्यधात्।१२३।कल्याणाभिधपुत्रेणतथान्यदिजसत्तमैः। अनेकानागमग्रंथाविलोकितृमुनीश्वरैः।१२४।एकग्रंथस्थितंसर्वमंत्राणांसारमिच्छुभिः।।संप्रार्थितःस्वम त्यासौनामामंत्रमहोदधिः।।१२५॥अविच्छिन्नान्वयाःसंतुनिजधर्मपरायणाः।।मंगलानिप्रपश्यतुसवेंद्रोहप राङ्मुखाः।।१२६॥हरिःकरोतुकल्याणंसर्वेषांजगदीश्वरः॥प्रवर्तयंत्विमंग्रंथयावद्वेदोरवि शशी॥ 127 // नरसिंहोमहादेवोमहादेवार्तिनाशनः // मुदेपरोमहालक्ष्म्यादेवावरनतोस्तुमे // 128 // नृसिंहउत्संग समुद्रजोमांसमुद्रजद्वीपगृहेनिषण्णः॥समुद्रगोहीनमतिःसदाव्यात्समुद्रभक्ताखिलसिद्धिदायी // 129 // व्यात् // कीदृशः // उत्संगेसमुद्रजालक्ष्मर्यिस्यसः // समुद्रजातंयच्छ्वतद्वीपंतत्रयद्गृहंतत्रोपविष्टः // समुत्सहर्षः॥रजोहीनमतिर्विरजाः॥ समुद्राअंजल्यादिमुद्राविदोयेभक्तास्तेषांसर्वसिद्धिदाता // 129 // For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545