Book Title: Mantra Mahodadhi Granth
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०२५ म०म० शारीरमासनमुक्त्वोपवेशार्थमासनमाह // गोखनेति॥फेरुःशृगालः॥गवादीनांकृत्तौचर्मण्युपविश्यशांत्या दिविधेयम्॥१६॥१७॥विन्यासानाह॥ग्रंथनमिति॥१८॥ग्रंथनलक्षणमाह॥ एकइति॥१९॥विदर्भलक्षणमाह॥ // 228 // आदाविति // ग्रंथनविदर्भयोर्मत्रनामवर्णलेखनेऽन्यतरसमाप्तोपुनर्लेखनम् // 20 // संपुटलक्षणमाह // मंत्र शांत्यादिषुप्रकुर्वीतक्रमादासनमुत्तमम् // गोखड्गजफेरूणांमेषीमहिषयोस्तथा // 16 // कृत्तौनिवेश्य कुर्वीतजपंशांत्यादिकर्मणि // आसनान्येवसंकीयविन्यासःप्रोच्यतेधुना // १७॥ग्रंथनंचविदर्भाख्यः संपुटोरोधनंतथा // योगःपल्लवएतेषविन्यासाःकर्मसुस्मृताः॥१८॥ प्रत्येकमेषांपण्णांतुलक्षणंप्रणि गद्यते // एकोमंत्रस्यवर्णःस्यात्ततोनामाक्षरंपुनः॥१९॥ मंत्रा!नामवर्णश्चेत्येवंग्रंथनमीरितम् // आ दौमंत्राक्षरद्वंद्वमेकनामाक्षरंततः॥२०॥ एवंपुनःपुनःप्रोक्तोविदर्भोमंत्रवित्तमैः॥ मंत्रमादौसमुच्चार्य ततोनामाखिलंपठेत् // 21 // अंतेव्युत्क्रमतोमंत्रमेषसंपुटईरितः॥आदिमध्यावसानेषुनानोमंत्रस्तुरो धनम् // 22 // वामांतेतुमनुयोगोमंत्रांतेनामपल्लवः॥ अर्द्धचंद्रनिभंपार्श्वद्वयेपद्मद्वयांकितम् // 23 // मिति // 21 // रोधनमाह // आदीति ॥२२॥योगमाह // वामति // पल्लवमाह // मंत्रांतइति // मंडल माह // अर्द्धचंद्रेति // 23 // 228 // For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545