Book Title: Mantra Mahodadhi Granth
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Page 509
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org एषांस्वकुलान्यकुलत्वमाह // पार्थिवेति॥८४॥८५॥८६॥८७॥ 88 // 89 // फलमाह // स्वकुलेऽभीप्सिता पार्थिवादिकवर्णानांस्वकीयाःस्वकुलाभिधाः // पार्थिवस्यचवर्णस्यमित्रंवारुणमक्षरम् // 84 // तैजसं शत्रुभूतस्यादुदासीनंतुमारुतम् // जलोद्भवस्यवर्णस्यपार्थिवंमित्रमीरितम् // 85 // सपत्नवह्निसं भूतमुदासीनंतुवायवम् // तैजसस्याथवर्णस्यवायवंमित्रमुच्यते // 86 // विद्वेषीवारुणोवर्णउदासीन स्तुपार्थिवः॥ पवनोत्थितवर्णस्यमित्रवह्निसमुद्भवम् // 87 // शत्रुःपार्थिववर्णःस्यादुदासीनस्तु पाथजः // चतुणीपार्थिवादीनामाकाशार्णःसखासदा // 88 // मनोःसाधकनानोपियौवर्णावादिमौ तयोः // स्वकुलादिकभेदस्तुशोध्योमंत्रप्रदित्सता // 89 // स्वकुलेभीप्सितासिद्धिःसिद्धिर्मि।पिकी तिता॥ अमित्रमरणंरोगउदासीनेनकिञ्चन // 9 // उदासीनममित्रंचमंत्रंदूरेणवर्जयेत् // स्वकुलं मित्रभूतंचगृह्णीयादिष्टकामुकः॥९॥नक्षत्रैक्येपिसंप्रोक्तंस्वकुलंनाममंत्रयोः॥ पुंस्त्रीनपुंसकाःप्रोक्तामन वस्त्रिविधाबुधैः॥९२॥वषडताःफडताश्चपुमांसोमनवःस्मृताः // वौषट्स्वाहांतगानार्थीहूंनमोंतानपुंस काः॥९३॥वश्योच्चाटनरोधेषुपुमांसःसिद्धिदायकाःक्षुद्रकर्मरुजांनाशेस्त्रीमंत्रा शीघ्रसिद्धिदाः॥ 94 // सिद्धिरिति // 90 // 91 // पुनर्मत्रत्रैविध्यमाह // पुंस्त्रीति॥९२॥९३ // तेषांविनियोगमाह॥वश्येति // 9 // hoatbahekhbhhota For Private and Personal Use Only

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