Book Title: Manav ho Mahavir Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha Foundation View full book textPage 5
________________ अध्यात्म की सारी कोशिश, सारी तलाश बस शांति की तलाश है। पर उपाय क्या? मन की निरन्तर चलती पागल बड़बड़ाहट से मुक्त होकर शांत होने का उपाय क्या? महावीर आज हमारे बीच नहीं, बुद्ध भी चले गए, कृष्ण, जीसस, नानक का भी सहारा नहीं, तो कौन मार्ग-दर्शन करे कि शांति का उपाय क्या? निराशा के इस घनघोर कुहासे में प्रकाश की एकमात्र किरण है, जीवित सद्गुरु का सान्निध्य, उनकी लेखनी का, वाणी का सहारा। श्री चन्द्रप्रभ – एक शांत मन, मौन आत्मा; जिसने न केवल अपने स्वरुप बल्कि स्वरुप से भिन्न, पदार्थ के स्वभाव को भी पहचाना, और इसीलिए जो अपने से भिन्न प्रत्येक, चाहे वह अपना शरीर ही क्यों न हो; को उसके स्वाभाविक स्वतंत्र परिणमन पर छोड़कर पृथक खड़े होने में, आत्मस्थ होने में सफल, सक्षम हुए। हमारा अहोभाग्य कि उनका जीवंत सान्निध्य, उनकी वाणी, उनकी संबोधि का आसरा हमें उपलब्ध है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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