Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 8
________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ 'उम्झिका ने हाथ जोड़कर कहा अब भोगवती से दाने माँगे गये तो उसने भी भण्डार से लाकर पाँच दाने सौंप दिये। सेठ ने पूछा तो उसने सकुचाते हुए कहानहीं तात! वे दाने तो मैंने फैंक दिये थे। ये तो मैं भण्डार में से लाई हूँ। (पिताश्री ! वे दाने तो मैंने खा लिये। ledende Keep0000/ o , रक्षिका की ओर सेठ ने देखा, तो उसने तुरन्त । अब सबसे छोटी बहु रोहिणी से दाने माँगे गये अपनी रत्न मंजूषा में से दाने निकालकर सेठ। तो उसने विनय पूर्वक कहा- या के समक्ष रख दिये और बोली-SIM तात! दाने तैयार हैं । पिताश्री ! ये वही पर उन्हें लाने के लिये बहुत दाने हैं, जो सी गाड़ियाँ चाहिये। आपने मुझे चार वर्ष पूर्व दिये थे। के लिये बहत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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