Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 24
________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ राजा जितशत्रु मन्त्री के घर पहुंचे। मन्त्री ने राजा के समक्ष वहीं गन्दा जल मंगवाया। देखिये महाराज ! यह वही गन्दा मल है। अब मैं आपके समक्ष इस जल को घड़े में डालूँगा। सज्जीखार कंकड, मिट्टी आदि से निथर कर A(छनकर) यह शुद्ध हो जायेगा। मन्त्री ने शोधन प्रक्रिया द्वारा शुद्ध जल को चाँदी के प्याले में भरा और उसमें सुगन्धित द्रव्य मिलाकर राजा के सामने प्रस्तुत किया। लीजिये महाराज! अब यह स्वच्छ सुगंधित जल ग्रहण कीजिए. ORAT salch अब राजा को मन्त्री द्वारा कही हुई। | भगवान महावीर ने जनता को सम्बोधित करते हुए कहापुरानी बातें याद हो आईं। बंधुओं, पदार्थ-स्वरूप का यह ज्ञान किवल पोथियों का नहीं, जीवन का विज्ञान है। पदार्थ का स्वभाव परिवर्तन शील है उसके अच्छे-बुरे रूप को लेकर मन में राग-द्वेष बढ़ाना व्यर्थ है। प्रत्येक परिस्थिति में शांत और प्रसन्न रहना। यही तत्वज्ञान का सार है। वास्तव में सुबुद्धि सत्य कहता है। परिस्थिति के अनुसार वस्तु का स्वरूप बदलता रहता है, इसलिए किसी को एकदम बुरा मानकर उस पर द्वेष या घृणा । करना ठीक नहीं है। समाप्त ज्ञाता धर्म कथासूत्र 22 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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