Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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जिनदत्त ने आढ़तियों से बात की।
भगवान महावीर की बोध कथाएँ
उसका अनाज हाथों-हाथ दुगने दाम पर बिक गया।
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वाह ! इस धन्धे में तो बहुत मुनाफा है। मैं यहाँ रहकर यहीं व्यापार करूँगा।
कुछ ही दिनों में जिनदत्त ने उसी नगर में अनाज की एक बड़ी दुकान कर ली। वह गाँव से सस्ते दामों पर अनाज लाकर शहर में बेचता था। इस धन्धे में उसे खूब मुनाफा हुआ। और उसकी पूँजी कई गुना हो गई।
दो वर्ष पश्चात् तीनों भाई अपने घर पास वापस आये। पिता मेघदत्त तीनों बेटों को सकुशल वापस आया देख बहुत प्रसन्न हुआ। यात्रा की थकान मिटाने के पश्चात मेघदत्त ने तीनों पुत्रों को अपने पास बुलाया और कहा
पुत्रो! मैंने तुम्हें व्यापार करने के लिये एक हजार स्वर्ण मुद्रायें दी थीं वह मुझे वापस कर दो। और तुमने क्या कमाया है मुझे बताओ ?
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