Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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भगवान महावीर की बोध कथाएँ
यह सुनकर सोहन अपनी फटेहाली और दुर्दशा का रोना रोने लगा। शिवदत्तने अपनी मूल पूँजी पिता को वापस कर दी।
पिताजी! मैंने ब्याज के पैसों से अपना खर्चा चलाया और मूल पूँजी सुरक्षित वापस ले आया हूँ।
जिनदत्त ने बहुत सारा धन हाथी घोड़े और अनाज की गाड़ियाँ पिता को भेंट दीं। और बोला
लीजिये पिताजी, मैं आपके लिये यह बीस हजार स्वर्ण मुद्रायें और आभूषण आदि लाया हूँ। यह सब मैंने उसी एक हजार स्वर्ण मुद्राओं से कमाया है।
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पिताजी ! मेरे पास तो एक फूटी कौड़ी भी नहीं बची है। जो था वह सब खो दिया।
कथा सुनाकर भगवान महावीर ने श्रावकों से कहाश्रोताओ ! इस संसार
में कुछ मनुष्य अपनी बुद्धिमानी से स्वयं की, समाज तथा राष्ट्र
सुख-समृद्धि को विस्तार देते हैं, कुछ
केवल रखवाले और
कुछ ऐसे भी होते हैं
मिली है, उसको भी व्यर्थ कर देते हैं।
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