Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ५ दिवाकर चित्रकथा) मूल्य: १७ रुपया भगवान महावीर की बोध कथाएँ 000 ** सुसंस्कार निर्माण विचारशुद्धि, ज्ञान वृद्धि मनोरंजन Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ भगवान महावीर अपने समय के लोकनायक थे। उन्होंने धर्म के सम्बन्ध में चली आ रही मान्यताओं एवं परम्पराओं में जो क्रान्तिकारी परिवर्तन किये, उनमें एक मुख्य परिवर्तन था- सभी जाति एवं वर्णों के लोगों को धर्म साधना करने का तथा स्त्रियों एवं शूद्रों को धर्मशास्त्र पढ़ने का समान अधिकार। इसी कारण उन्होंने युगों से चली आ रही संस्कृत भाषा में धर्मशास्त्र रचने की परम्परा को तोड़ा और अपना उपदेश (प्रवचन) उस समय की लोकभाषा प्राकृत- अर्द्धमागधी में दिया। लोकभाषा में उपदेश देने के कारण समाज के सभी वर्ग और सभी उम्र के लोग उनके उपदेश सुनते-समझते और उनको अपनी शक्ति के अनुसार ग्रहण भी करते। भगवान महावीर की उपदेश शैली समाज के सभी वर्ग को रोचक एवं आकर्षक लगती थी। धर्म की गम्भीर से गम्भीर बात वे छोटे-छोटे व्यावहारिक उदाहरणों एवं दृष्टान्तों के द्वारा इतनी सहज और सरल शैली में समझाते थे कि वह सीधी श्रोताओं के हृदय को स्पर्श कर जाती थी। भगवान महावीर के सभी उपदेश जो आज हमें उपलब्ध हैं, अर्द्धमागधी (प्राकृत) भाषा में हैं और उन्हें 'आगम' या गणिपिटक कहा जाता है। हमने यहाँ पर भगवान महावीर के अन्तिम उपदेश, उत्तराध्ययन सूत्र तथा छठा अंग आगम ज्ञातासूत्र की कुछ बोध कथाओं को संकलित कर प्रस्तुत किया है। हमें विश्वास है यह पाठकों के लिए जितनी रोचक होगी, उतनी ही बोधप्रद भी सिद्ध होगी। सैकड़ों पुस्तकों के रचयिता स्व. उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी द्वारा लिखित 'जैन कथाएँ' के आधार पर विद्वान् आचार्य श्री देवेन्द्र मनि जी ने इस पस्तक का सम्पादन किया है। उनकी उदार भावना के प्रति हार्दिक कृतज्ञता । लेखक : उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि संयोजन एवं प्रकाशन व्यवस्था : संजय सुराना सम्पादक : आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि चित्रण : डॉ. त्रिलोक, डॉ. प्रदीप © सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन राजेश सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन, A-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-282002, दूरभाष : (0562) 54328, 51789 के लिये प्रकाशित एवं निर्मल चित्रण, आगरा में मुद्रित । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काम का बंटवारा बंटवारा उसके धनपाल, धनदेव, धनगोप एवं धनरक्षित नाम के चार पुत्र में समृद्धिशाली व्यापारी रहता था। और उनकी चार पत्नियाँ आदि का भरा पूरा सुखी परिवार था। राष् एक दिन धन्ना के मन में विचार ऊठा। G Te க t 13113 113 11 मैं अब वृद्ध हो गया हूँ। न जाने कब सांसे छूट जायें। अपने जीवन काल में ही मैं परिवार की जिम्मेदारियों का बंटवारा इस प्रकार कर दूँ, कि मेरी मृत्यु के बाद भी परिवार में प्रेम और समृद्धि बनी रहे। यह सोचकर सेठ ने सबसे पहले घर की जिम्मेदारी पुत्र वधुओं को सौंपने का निश्चय किया। किन्तु काम का बंटवारा किस प्रकार हो, वह यह सोचने लगा। मुझे पुत्र वधुओं की योग्यता की परीक्षा लेनी चाहिए और योग्यता के अनुसार कार्य सौंपना चाहिये। धन्ना ने उनकी योग्यता जाँचने के लिये एक मनोवैज्ञानिक तरीका अपनाया। 1 www.jainelibrary ce Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ कुछ दिन बाद धन्ना ने अपने समस्त परिजनों को एक विशाल प्रीतिभोज दिया। भोज के बाद परिजनों के समक्ष उसने अपनी पुत्र वधुओं से कहा आज मैं तुम्हें ये धान के पाँच दाने दे रहा हूँ। इन्हें सम्भाल कर रखना। मैं जब भी वापिस माँगू मुझे लाकर दे देना। पहली पुत्र वधु उज्झिका अपने स्वसुर के इस व्यवहार पर मन ही मन हँसने लगी 53 oxoo त्रण धान के पाँच दाने सम्भाल कर रखने से क्या फायदा घर में अनेक कोष्ठागार धान से भरे पड़े हैं। जब ससुर जी माँगेंगे मैं दूँगी। पुत्र वधुओं ने स्वसुर से सम्मानपूर्वक दाने ले लिये और अपने-अपने कमरों में जाकर विचार करने लगीं। उसने उन दानों को फैंक दिया। 2 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ दूसरी पुत्रवधु भोगवती ने सोचा | और भोगवती ने धान के दाने छीलकर खा लिये। छ (ससुर जी ने जब इतना बड़ा समारोह करके दाने दिये हैं, तो जरूर कोई बात होगी। हो सकता है यह कोई सिद्ध पुरुष का प्रसाद ही हो, इन्हें तो खा लेना चाहिये। AAGAN तीसरी बहु रक्षिका का मन भी कुछ इसी - तरह के विचारों में लगा थाहा ससुर जी ने इन्हें सुरक्षित रखने को कहा है तो अवश्य ही यह चमत्कारी दाने होंगे। वह कुछ अधिक समझदार थी, उसने दाने एक मखमली कपड़े में बाँधकर अपनी तिजोरी में रख दिये। व TCOOR 8/ .C WER Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौथी बहू बड़ी चतुर थी। वह इस उपक्रम की गहराई में उतरने लगी। भगवान महावीर की बोध कथाएँ 833 पिताश्री अत्यन्त बुद्धिमान है। उन्होंने पांच दाने देने के लिये ही तो इतना बड़ा समारोह व्यर्थ नहीं किया होगा? अवश्य ही इन दानों के पीछे कोई विशेष प्रयोजन होना चाहिये। P रोहिणी ने अपने विश्वासपात्र सेवक चतुरसेन को बुलायाचतुरसेन, तुम यह दाने लेकर मेरे पिता के घर जाओ। उनसे कहो कि वे इन दानों की अलग क्यारियों में विशेष ढंग से खेती कराने की व्यवस्था करायें। & उनके वापस मांगने पर ये पांच ही दाने लौटाये तो क्या लौटाये? इसके बदले उन्हें पांच लाख या पांच करोड़ दाने दिये जा सके, मुझे ऐसा कोई उपाय करना होगा। चतुरसेन दाने लेकर रोहिणी के पिता के घर पहुँचा और उनकी बेटी का संदेश दिया। पिता ने उन दानों की अलग से खेती की व्यवस्था करवा दी। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ पूरे चार वर्ष बीतने के बाद धन्ना को पुरानी बात स्मरण हो आई। も पुनः उसी प्रकार समारोह का आयोजन किया गया। भोजन आदि के उपरान्त धन्ना ने अपनी चारों बहुओं को परिजनों के सम्मुख बुलाकर पूछा & मैंने चार वर्ष पूर्व धान के पांच-पाँच दाने आप सबको दिये थे। वे दाने मुझे आज वापस चाहिये। ससुर की बात सुनकर बड़ी बहू भीतर भण्डार में गई और धान के पांच दाने लाकर उन्हें दे दिये। दाने देखकर धन्ना ने पूछा Creat अब मुझे उस परीक्षा का परिणाम जानना चाहिये। 5 Dire ६ 8 पुत्री! क्या सचमुच यह वही दाने हैं, जो मैंने तुम्हें दिये थे? લ 2 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ 'उम्झिका ने हाथ जोड़कर कहा अब भोगवती से दाने माँगे गये तो उसने भी भण्डार से लाकर पाँच दाने सौंप दिये। सेठ ने पूछा तो उसने सकुचाते हुए कहानहीं तात! वे दाने तो मैंने फैंक दिये थे। ये तो मैं भण्डार में से लाई हूँ। (पिताश्री ! वे दाने तो मैंने खा लिये। ledende Keep0000/ o , रक्षिका की ओर सेठ ने देखा, तो उसने तुरन्त । अब सबसे छोटी बहु रोहिणी से दाने माँगे गये अपनी रत्न मंजूषा में से दाने निकालकर सेठ। तो उसने विनय पूर्वक कहा- या के समक्ष रख दिये और बोली-SIM तात! दाने तैयार हैं । पिताश्री ! ये वही पर उन्हें लाने के लिये बहुत दाने हैं, जो सी गाड़ियाँ चाहिये। आपने मुझे चार वर्ष पूर्व दिये थे। के लिये बहत । Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ रोहिणी का उत्तर सुनकर सब लोग चकित हो गये। धन्ना के चेहरे पर भी आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता की रेखायें चमकने लगीं। उसने पूछा Ce Ev Maca STME ॐ रोहिणी ने उन्हें सारी बात विस्तार पूर्वक बताई कि किस तरह उसने अपने पिता के यहाँ । खेत में अलग क्यारी बनवाकर धान के पाँच दानों से खेती करवाई। धीरे-धीरे चार वर्ष में वे इतने हो गये कि उन्हें ढोकर लाने के लिये कई गाड़ियाँ चाहिये। पुत्री! इसका क्या मतलब? पाँच दानों के लिये गाड़ियों की क्या आवश्यकता ? | अब धन्ना सेठ ने अपने परिजनों की तरफ देखा और बोला मैं अपनी पुत्र वधुओं को उनकी योग्यता अनुसार घर का भार सौंपना चाहता था। इसलिये मैंने इनकी योग्यता की परीक्षा ली।। अब मैं योग्यतानुसार कार्य की जिम्मेदारी हर एक को बाँट देता हूँ। 7 . Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ सबसे छोटी बहु रोहिणी को मैं गृह संचालन की पूर्ण जिम्मेदारी देता हूँ। इस गृह की वह स्वामिनी होगी। अपने परिवार की सुख-समृद्धि का विस्तार करने की कला में यह निपुण है। मेटी दूसरी पुत्र वधू रक्षिका को, मैं घर की चल-अचल सम्पत्ती की रक्षा का दायित्व सौंपता हूँ। वह वस्तुओं को सम्भाल कर रखने में कुशल है। भोगवती को परिवार के खानपान, रसोई आदि व्यवस्था) का पूरा दायित्व दिया जाता है। खाद्य विभाग उसी के THE जिम्मे रहेगा। और सबसे बड़ी बहु उम्झिका को घर की सफाई और स्वच्छता का काम सौंपा जाता है। वह घर की सफाई का ध्यान रखेगी क्योंकि वह) कूड़ा-कचरा फेंकने की कला में होशियार है। ANSO ne lain Education International Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ इस तरह अपनी योग्यता अनुसार कार्य पाकर बहुयें, घर को कुशलता पूर्वक चलाने लगी, और सब मिल जुलकर आनन्द पूर्वक रहने लगे। 100 668 कथा सुनाकर भगवान महावीर अपने शिष्यों को उसका मर्म समझाते हैं। MH श्रोताओ ! जो मनुष्य अपने कार्य और । जिम्मेदारियों को ठीक तरह से समझ कर उन्हें योग्यता पूर्वक निभाता है,अपने व्रत नियमों का यथोचित संरक्षण एवं विकास करता है। उसे संसार में सफलताऔर सम्मान प्राप्त होता है। traa समाप्त For 9 ज्ञाता धर्म कथा सुत्र अध्याय & Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रलोभन का मायाजाल। चंपा नगरी में माकंदी नामक सार्थवा रहता था। उसके जिनपाल और मिनरक्षित नाम के बड़े ही साहसी और चतुर दो पुत्र थे। उन्होंने व्यापार के लिये ग्यारह बार साहसिक समुद्र यात्रायें करके अपार धन कमाया। अब वे अपनी बारहवीं समुद्र यात्रा की तैयारी कर रहे थे। माता-पिता ने उन्हें समझाया पुत्रों, तुमने इतना धन कमाया है। उसका यहीं रहकर सुख से भोग करो। अब ज्यादा धन कमाने की लालसा में इतनी जोखिम भी समुद्र यात्रायें नहीं करनी चाहिये। परन्तु धन कमाने की असीम लालसा में फँसे दोनों साहसी भाईयों ने माता-पिता की बात की परवाह नहीं की और अपनी समुद्र यात्रा पर चल पड़े/ A A7जिन रक्षित भाई, हम इस बार लवण समुद्र की तरफ चलेंगे। वहाँ से इतने हीरेजवाहरात भरकर लायेंगे कि सात पीढ़ियों तक कमाने की जरूरत नही पड़ेगी। a For Privatel Oersonal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ सागर की लहरों के साथ खेलता हुआ उनका जहाज लवण समुद्र की तरफ चला जा रहा था। अचानक आकाश में काले-काले बादल घिर आये, बिजली चमकने लगी और चारों ओर अंधकार छा गया। समुद्र में भयंकर तूफान उठने लगा। ऊँची-ऊँची लहरों में जहाज तिनके की तरह डोलने लगा। हे भगवान ! हमारी रक्षा करो। इतना भयंकर तूफान हमने आज तक नहीं देखा। लहरों में उछलता हुआ जहाज एक बड़ी चट्टान से जा टकराया और टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया। दोनों भाई अपनी प्राण रक्षा के लिये हाथ पैर मारने लगे। जहाज का एक टूटा तख्ता उनके हाथ लग गया। उसी के सहारे तैरते तैरते वे एक किनारे पर जा पहुँचे। भाग्य से वह रत्नद्वीप का तट था। उस द्वीप की स्वामिनी रत्नादेवी बड़ी ही दुष्ट प्रकृति की थीं। जब उसे अवधिज्ञान द्वारा दोनों भाईयों के द्वीप पर पहुँचने का पता चला तो वह आकाश मार्ग से उड़कर उनके पास पहुँच गई। bood DALE Aalkovate Loos तुम्हारा रत्नद्वीप पर स्वागत है। चलो मेरे साथ मेरे महल में चलो। 11 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ रत्नादेवी उन्हें बड़े स्नेहपूर्वक अपने उसकी बात सुनकर जिनपाल और मिनरक्षित | राजमहल में ले गई। विविध प्रकार के व्यंजन स्तब्ध रह गये। और मदिरा पीने को दी। ओह ! यह तो बड़ी निर्लज्ज तुम यहाँ मेरे AAL है। साथ आनन्दपूर्वक उरहो,और मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लो। Urdood 00000 नहीं! नहीं ! हमें यह बात स्वीकार नहीं है। देवी ने उन्हें अपनी नंगी तलवार दिखाते हुये कहा ANया तो मेटा प्रस्ताव स्वीकार PAN करो अन्यथा मैं अभी तुम्हारे सिर धड़ से अलग कर दूँगी। भय का मारा मनुष्य क्या नहीं करता। दोनों ने । देवी की बात स्वीकार कर ली और वहाँ देवी । के साथ रहने लगे। अब हम रत्नादेवी की आज्ञा बिना कहीं जा · नहीं सकते। उसने हमें सुखों का लालच देकर अपना गुलाम बना लिया है। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ od C एक बार रत्नादेवी को लवण समुद्र की देखभाल करने के लिये जाना पड़ा, उसने उन दोनों भाईयों को बुलाकर कहा मैं कुछ दिनों के लिए तुमसे दूर जा रही हूँ। तुम दोनों यहाँ सुख से रहो, खाओं, पीओ, बाग-बगीचों में घूमो, परन्तु ध्यान रखना। जिनपाल और जिनरक्षित देवी के कठोर प्रतिबन्धों से छटपटाये हुये थे। आज देवी की अनुपस्थिति में उन्हें स्वतन्त्रता से विचरण करने का अवसर जो मिल गया। भैया, पहले पूर्व के बागों की तरफ चलते हैं। आज हम जी भरकर स्वतन्त्रता पूर्वक घूमेंगे। इस द्वीप के दक्षिण दिशा के जंगलों में एक भयंकर विषधर रहता है, अतः उधर, कभी मत ७ जाना। बाकी तीनों ओर बाग बगीचे हैं। जहाँ भी जाना चाहो जा सकते हो। घूमते-घूमते उन्हें देवी की बात याद आई और उनके मन में दक्षिण दिशा में जाने की जिज्ञासा जाग उठी। DPK जिन रक्षित ! आओ दक्षिण दिशा के वन की तरफ चलें। देखें उधर क्या है?. रत्नादेवी के आने से पहले ही वापस आ जायेंगे उसे मालूम ही नहीं पड़ेगा। A - For Private 1 3 ersonal Use Only D और दोनों दक्षिण दिशा के जंगल की तरफ चल दिये। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ दक्षिण दिशा के वन में प्रवेश करते ही उन्होंने फिर भी जिज्ञासा उन्हें आगे बढ़ा ले गई। कुछ आगे एक भयंकर शमशान देखा। चारों ओर हड्डियों। |चले, तभी एक शूली दिखाई दी जिस पर एक मनुष्य के ढेर लगे थे। भयंकर दुर्गन्ध आ रही थी। यह टंगा पीड़ा से चिल्ला रहा था। यह देख दोनों के देख उनके पाँव भय से लड़खड़ाने लगे। आश्चर्य का पार न रहा, उन्होंने निकट जाकर पूछा भाई! यह क्या विकट चक्र है? तुम्हारी यह दुर्दशा किसने की? S MLALAN MORRHANDNANKS) उसने बताया ANI यह क्रूर रत्नादेवी का शमशान है। मैं उसी के माया जाल का शिकार हूँ। तुम यहाँ कैसे फँस गये! मैं कांकदी नगरी का। व्यापारी हूँ। जहाज टूट। जाने से भटकता हुआ रत्नादेवी के चंगुल में फँस गया। एक दिन उसने छोटे से अपराध से क्रुद्ध होकर मुझे इस शूली पर चढ़ा दिया। यहाँ पर आने वाला हर मनुष्य उसके माया जाल में फंसता है, और अन्त में उसकी यही दुर्दशा होती है। 3 14 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ यह बात सुनकर दोनों भाइयों के पसीने छूट गये। जिनपाल ने पूछा फुल यहाँ से मुक्त होने का भी कोई उपाय है? दोनों यह बात सुनकर वापस महल आ गये और आपस में सलाह की। भाई! आज ही अमावस्या की रात है, हमें तुरन्त पूर्व के जंगल की तरफ चल देना चाहिये। MFFIC हाँ एक उपाय है। पूर्व दिशा के वन में शैलक नामक एक यक्ष, अमावस्या को अश्व रूप में उपस्थित होकर अपने भक्तों को पुकारता है "किसकी रक्षा करूँ?" उस समय जो प्रार्थना करता है, उसे यहाँ से बचा कर ले जाता है। यह निश्चय कर दोनों जल्दी से पूर्व के जंगल की ओर चल पड़े। कुछ ही देर में दोनों उस स्थान पर पहुँच गये। नियत समय पर अश्व रूपधारी यक्ष प्रकट हुआ और आवाज लगाई "किसको तारूँ" किसकी रक्षा करूँ। है। देव! कृपा कर हमें इस विपत्ति से पार उतारिये। प 15 w Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ यक्ष ने कहा - तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें सुरक्षित रूप से यथास्थान पहुंचा दूंगा, किन्तु । ध्यान रखना, देवी तुम्हारे पीछे दौड़ी आयेगी, वह बहुत भय व प्रलोभन दिखायेगी। यदि तुम उसके मोह जाल में फँस गये,और उसकी ओर मुड़कर भी देख लिया तो मैं तुम्हें अपनी पीठ से उतारकर समुद्र में फैंक दूंगा। PM ल इतना कहकर यक्ष ने उन्हें अपनी पीठ पर बैठाया और उड़ चला। इधर रत्ना देवी जब वापस पहुंची तो महल को सुनसान देखकर चौंकी। उसने अपने अवधि ज्ञान का प्रयोग किया। ओह! तो वे दोनों यक्ष की मदद पसे यहाँ से निकलने का प्रयत्न कर रहे हैं। मुझे तुरन्त ही इन्हें रोकना चाहिये। रत्नादेवी उनके पीछे दौड़ी। झूठे प्यार भरे मीठे शब्दों में पुकारने लगी मिरे प्राण प्रिय! मुझे छोड़कर मत जाओ। मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकूँगी। मैं जीवन भर तुम्हारी दासी बनकर रहूँगी।। 16 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ जिनपाल ने देवी की बातों पर ध्यान नहीं दिया। वह अविचल भाव से बैठा रहा। किन्तु जिनरक्षित का मन थोड़ा-सा पिघल गया, उसने देवी की मोह भटी बातों से विचलित होकर ज्यों ही देवी की ओर नजर उठाई कि अश्व रूपी यक्ष ने उसे अपनी पीठ से गिरा दिया। देवी ने क्रोध में आकर समुद्र में गिरने से पहले ही उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। और जिनपाल सुखपूर्वक अपने घर पहुंच गया। बन्धुओ ! जो साधक लालसा एवं प्रलोभनों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह सुखपूर्वक अपनी जीवन यात्रा तय कर सकता है. और जो उसके माया-जाल में जा फँसा, तो वह अपना सर्वनाश कर बैठता है। इसलिए प्रलोभनों से बचो! - RAO.GIOTOAL समाप्त ज्ञाता धर्म कथा सूत्र Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिवर्तन COM MiracliliAT ITLUD KWANI PPA चम्पा नगरी में जितशत्रु राजा था। सुबुद्धि नाम का उसका मन्त्री, बड़ा चतुरा विवेकशील और भगवान महावीर के तत्त्वज्ञान का गहरा जानकार था। एक बार राजा जितशत्रु अपने मन्त्रियों के साथ किसी प्रीतीभोज में सम्मिलित हुआ। वाह! क्या स्वादिष्ट और TADHAN रुचिकर भोजन है। हाँ महाराज! बड़ा ही स्वादिष्ट है। लोग तो ऊंगलियाँ चाटते ही रह गये FITUDY अन्य सब लोगों ने भी महाराज की हाँ में हाँ मिलाई और भोजन की खूब प्रशंसा की। 183 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ | किन्तु मन्त्री सुबुद्धि, शान्त और गंभीर बना रहा। मन्त्री ने तटस्थ भाव से कहाराजा को बड़ा आश्चर्य हुआ, उसने मन्त्री से पूछा महाराज! पदार्थ परिवर्तनशील हैं। मन्त्रीवर ! क्या बात है? इतना वस्तुओं के संयोग और परिस्थिति के स्वादिष्ट भोजन बना है, सभी लोग अनुसार वह कभी प्रिय और कभी दिल खोलकर प्रशंसा कर रहे अप्रिय लगते हैं। इसमें प्रशंसा और हैं और आप हैं कि मौनव्रत लिये निन्दा की क्या बात है? बैठे हैं? 200000cd GOOTA (OICONCE ( 2000 O ACOCIOIDh CGC COOOK KISA oO | अपनी बात कट जाने पर राजा मन ही मन खिसिया उठा। एक दिन राजा जितशत्रु दरबारियों के साथ घूमता हुआ नगर के बाहर गया। वहाँ उसे गन्दे पानी का एक नाला दिखाई दिया, जिसमें से मरे, सड़े हुए जानवरों जैसी भयंकर दुर्गन्ध आ रही थी। सब लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगे। राजा ने भी घृणा के साथ नाक सिकोड़ते हुये मंत्री से कहा N सुबुद्धि! यह पानी कितना गन्दा और बदबूदार है। इसकी भयंकर दुर्गन्ध से तो मेरा सिर फटने लग गया। छी! छी! 19 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्त्री ने शान्त और विनीत भाव से कहा भगवान महावीर की बोध कथाएँ Soor शिव "महाराज! इसमें घृणा की क्या बात है ? पदार्थ का स्वरूप तो सदा बदलता रहता है। जो कभी स्वच्छ और निर्मल जल था, वही गन्दा बन गया। यही जल वापस स्वच्छ और निर्मल भी बन सकता है। फिर राग-द्वेष क्यों ? मन्त्री का यह तत्व ज्ञान राजा को रास नहीं आया। वह कुछ उत्तेजित स्वर में बोला नहीं मन्त्री, तुम भ्रम में हो । गन्दी चीज कभी अच्छी नहीं बन सकती। और यह बात-बात में क्या अपना तत्व-ज्ञान बघारते रहते हो? यह कोरा तत्व ज्ञान तुम्हें कभी धोखा दे जायेगा। बात बढ़ती देख मन्त्री ने मौन साध लिया। उसका अपना बुद्धि सूत्र था-बोलना कम, करना अधिक। कई सप्ताह बीत गये। एक दिन सेवक ने राजा को भोजन के समय अत्यन्त मधुर शीतल सुगन्धित जल दिया। जल पीकर राजा ने सेवक से पूछा ऐसा मधुर शीतल जल हमने पहले कभी नहीं पिया। आज कहाँ से आया है? महाराज! यह जल सुबुद्धि मन्त्री के घर से आपके लिए भेजा गया है। QUO 20 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ अगले दिन राजा ने मन्त्री से विनोद के स्वर में । पूछाBIRH मन्त्री ! तुम अकेले ही इतना मधुर एवं शीतल जल | महाराज! अपराध पीते रहे हो? हमें तो कभी क्षमा हो। यह जल नहीं पिलाया। कहाँ से आता नगर के बाहर वाले है, यह जल? NS गन्दे नाले का है। GOANE ROOOOD REARS Hoes AMIRMIRSTALE राजा को मन्त्री की बात पर विश्वास नहीं आया। उसने उत्तेजित होकर कहा मन्त्री हमसे मजाक मत करो। ठीक-ठीक बताओ सच क्या है? उस गन्दी खाई का जल ऐसा कैसे हो सकता है? महाराज! असम्भव कुछ नहीं है। यह सब हो सकता है, और मैंने किया है। आप चाहें तो इसकी शोधन क्रिया मेरे घर पर पधारकर देख सकते हैं। HOOSION OGLESO लढा Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ राजा जितशत्रु मन्त्री के घर पहुंचे। मन्त्री ने राजा के समक्ष वहीं गन्दा जल मंगवाया। देखिये महाराज ! यह वही गन्दा मल है। अब मैं आपके समक्ष इस जल को घड़े में डालूँगा। सज्जीखार कंकड, मिट्टी आदि से निथर कर A(छनकर) यह शुद्ध हो जायेगा। मन्त्री ने शोधन प्रक्रिया द्वारा शुद्ध जल को चाँदी के प्याले में भरा और उसमें सुगन्धित द्रव्य मिलाकर राजा के सामने प्रस्तुत किया। लीजिये महाराज! अब यह स्वच्छ सुगंधित जल ग्रहण कीजिए. ORAT salch अब राजा को मन्त्री द्वारा कही हुई। | भगवान महावीर ने जनता को सम्बोधित करते हुए कहापुरानी बातें याद हो आईं। बंधुओं, पदार्थ-स्वरूप का यह ज्ञान किवल पोथियों का नहीं, जीवन का विज्ञान है। पदार्थ का स्वभाव परिवर्तन शील है उसके अच्छे-बुरे रूप को लेकर मन में राग-द्वेष बढ़ाना व्यर्थ है। प्रत्येक परिस्थिति में शांत और प्रसन्न रहना। यही तत्वज्ञान का सार है। वास्तव में सुबुद्धि सत्य कहता है। परिस्थिति के अनुसार वस्तु का स्वरूप बदलता रहता है, इसलिए किसी को एकदम बुरा मानकर उस पर द्वेष या घृणा । करना ठीक नहीं है। समाप्त ज्ञाता धर्म कथासूत्र 22 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोड़े के लिये सब कुछ खो दिया एक बनिया विदेश से एक हजार 'स्वर्ण-मुद्रा' कमा कर स्वदेश लौट रहा था। उसने रास्ते में खर्च के लिए एक स्वर्णमुद्रा (मोहर) भुनवाकर उसकी अस्सी काकिणी ले लीं। प्रतिदिन एक-एक काकिणी# खर्च करते-करते अन्त में उसके पास एक काकिणी बच गई, और उसे वह कहीं बीच के गाँव में जहाँ ठहरा था, भूल आया। मार्ग में कुछ दूर चलने के बाद उसको याद आया तो वह अपने साथ वालों से बोला Envarous हम जहाँ ठहरे थे। वहाँ मैं एक काकिणी भूल आया हूँ। अभी वापस जाकर ढूँढ़ कर लाऊँगा। Thobia # पुराना सिक्का एक पैसे के बराबर । 2. Can गजब हो गया? LUV stima क्यों क्या हुआ भाई? साथियों ने उसको समझाया। जाने भी दो, एक काकिणी के लिए इतनी दूर जाओगे, फिर आओगे, एक दिन व्यर्थ ही चला जाएगा। woolle m/m 23 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ बनिया बोला MAGE काम जानते हो, धन कमाना कितना कठिन है। एक-एक काकिणी के लिए कितना खून-पसीना बहाना पड़ता है। मैं ऐसा मूर्ख नहीं हूँ कि अपनी काकिणी भी जाए और पता भी न चले कि कहाँ गई? अभी जाकर ढूंढकर काकिणी वापस लाता हूँ। SODEGeeo साथियों ने उसका जिही स्वभाव देखकर ज्यादा विवाद नहीं किया। बोले M हम तो चलते हैं, अगले गाँव में तुम्हारा इंतजार करेंगे, जल्दी लौट आना। द HD साथी आगे निकल गए। बनिया वापस पिछले गाँव की ओर चल पड़ा। उसके पास हजार स्वर्ण-मुद्राएँ थीं। उसने सोचा इतनी जोखिम और इतना बोझ, वहाँ ले जा कर क्या करूंगा? अभी उलटे पाँव तो लौट आता हूँ। यहीं जंगल में कहीं छिपा देता हूँ। लौटता हुआ ले जाऊँगा। 24 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ उसने इधर-उधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया। बनिये की यह हरकत दूर खड़े एक व्यक्ति ने देख ली/ एक वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर स्वर्ण मुद्राओं | वह पीछे से आया, मिट्टी हटाई, तो स्वर्ण-मुद्राओं से की थैली उसमें रख दी। ऊपर मिट्टी डाल दी। भी हुई थैली दिखाई दी। बस उसका तो रोम-रोम पुलकित हो उठा। भगवान् ने मेरे लिए ही ये स्वर्ण-मुद्राएँ यहाँ छिपवाई हैं। HAS वृक्ष पर निशान बनाकर गाँव की ओर चल पड़ा। वह स्वर्ण-मुद्राएँ लेकर अपने घर चला गया। शाम तक काकिणी ढूँढते-ढूँढते वह परेशान हो गया। | बनिया, जिस सराय में ठहटा था, उस सराय में पहुंचा और लोगों से पूछ-ताछ करने लगा। LI0. भाई! तुमने मेटी एक काकिणी देखी है क्या? नहीं भाई! हमें नहीं मालुम। 25 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निराश हो कर मुँह लटकाए लौट आया। जब वह वृक्ष के पास पहुँचा, तो उसने गड्ढा खुदा हुआ देखा, और स्वर्ण-मुद्राएँ गायब थीं। भगवान महावीर की बोध कथाएँ हे! भगवान यह क्या हो गया ? वह रोता पीटता साथ वालों के पास पहुँचा, तो सभी लोग उसकी मूर्खता पर उसे धिक्कारने लगे। मूर्ख! sa पहले ही मना किया हा था, फिर भी तू नहीं माना। अब रोने से क्या होगा? बस, और क्या था? उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया। वह सिर पीटने लगा ach हाय! मेरी जीवन भर की कमाईव्यर्थ ही चली गई। अब मैं कौन-सा मुँह ले कर घर जाऊँगा? बाल-बच्चे क्या खाएँगे? इस प्रकार वह रो-रो कर अपने को कोसने लगा। भगवान महावीर ने कथा का अर्थ समझाते हुए कहा। बन्धुओं! इसी तरह जो व्यक्ति थोड़े से लाभ अथवा सुखों के लिये इस अमूल्य मानव जीवन को दाँव पर लगा देते हैं, वह उसी मूर्ख व्यापारी की तरह सब कुछ खो कर अन्त में पछताते हैं। 26 समाप्त उत्तराध्ययन सूत्र Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जमा पूँजी उसने अपने तीनों पुत्रों, देवदत्त, शिवदत्त और जिनदत्त को एक एक हजार स्वर्ण मुद्रायें देते हुए कहा मैं तुम तीनों को बराबर पूँजी देता हूँ। परदेश जाकर इससे व्यापार करो। भगवान महावीर की बोध कथाएँ मेघदत्त नाम का वणिक एक दिन अपनी दुकान पर बैठा विचार कर रहा था। मुझे अपने तीनों पुत्रों की योग्यता और चतुरता की परीक्षा लेनी चाहिए। कौन किस योग्य है? तीनों पुत्र धन लेकर व्यापार करने दूसरे शहर की ओर चल दिये। अपने गाँव से कुछ दूर पहुँचकर वह एक जगह रुके और आपस में सलाह की। यहां से तीन दिशाओं में रास्ते जाते हैं। हम तीनों को अपना भाग्य अजमाने अलग-अलग रास्तों पर जाना चाहिए। 27 Av Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सबसे बड़ा पुत्र देवदत्त दक्षिण दिशा की ओर चल दिया। कुछ दूर चलने पर वह एक नगर में पहुँचा। उसने सोचा-| FULLER मेरे पास धन है। पहले जिन्दगी का कुछ मजा ले लूँ। बाद में धन भी कमा लूँगा। धीरे-धीरे उसकी सारी जमा पूँजी खर्च हो गई और वह कंगाल हो गया। भगवान महावीर की बोध कथाएँ देवदत्त ने अपना धन आमोद-प्रमोद, मौज शौक में उड़ाना चालू कर दिया। 28 दूसरा पुत्र शिवदत्त पश्चिम दिशा के रास्ते पर चलते-चलते एक गाँव में जा पहुँचा। वाह ! कितना सुन्दर गाँव हैं। कितनी शान्ति है यहाँ। मैं यहीं रहूँगा। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ शिवदत्त ने उसी गाँव में एक दुकान लेली और ब्याज के पैसों की आमदनी से वह सुखपूर्वक गाँव वालों को ब्याज पर पैसा देने लगा। खाता-पीता और चैन से रहने लगा। तीसरा पुत्र जिनदत्त बड़ा ही चतुर था। उसने रास्ते में ही एक किसान से एक गाड़ी अनाज नगद पैसे देकर सस्ते भावों में खरीद लिया। किसान ने अनाज को बैलगाड़ी में भर कर शहर की अनाज मंडी में पहुंचा दिया।। Prewa TIWANA भाई! इस अनाज को शहर तक पहुंचा दो। भाडा और खर्चा भी दे दूँगा। यहाँ यह अनाज जरूर ऊँचे दामों पर बिक जायेगा। 29 For Private & Personal use only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनदत्त ने आढ़तियों से बात की। भगवान महावीर की बोध कथाएँ उसका अनाज हाथों-हाथ दुगने दाम पर बिक गया। वाह ! इस धन्धे में तो बहुत मुनाफा है। मैं यहाँ रहकर यहीं व्यापार करूँगा। कुछ ही दिनों में जिनदत्त ने उसी नगर में अनाज की एक बड़ी दुकान कर ली। वह गाँव से सस्ते दामों पर अनाज लाकर शहर में बेचता था। इस धन्धे में उसे खूब मुनाफा हुआ। और उसकी पूँजी कई गुना हो गई। दो वर्ष पश्चात् तीनों भाई अपने घर पास वापस आये। पिता मेघदत्त तीनों बेटों को सकुशल वापस आया देख बहुत प्रसन्न हुआ। यात्रा की थकान मिटाने के पश्चात मेघदत्त ने तीनों पुत्रों को अपने पास बुलाया और कहा पुत्रो! मैंने तुम्हें व्यापार करने के लिये एक हजार स्वर्ण मुद्रायें दी थीं वह मुझे वापस कर दो। और तुमने क्या कमाया है मुझे बताओ ? 7RP 30 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ यह सुनकर सोहन अपनी फटेहाली और दुर्दशा का रोना रोने लगा। शिवदत्तने अपनी मूल पूँजी पिता को वापस कर दी। पिताजी! मैंने ब्याज के पैसों से अपना खर्चा चलाया और मूल पूँजी सुरक्षित वापस ले आया हूँ। जिनदत्त ने बहुत सारा धन हाथी घोड़े और अनाज की गाड़ियाँ पिता को भेंट दीं। और बोला लीजिये पिताजी, मैं आपके लिये यह बीस हजार स्वर्ण मुद्रायें और आभूषण आदि लाया हूँ। यह सब मैंने उसी एक हजार स्वर्ण मुद्राओं से कमाया है। पिताजी ! मेरे पास तो एक फूटी कौड़ी भी नहीं बची है। जो था वह सब खो दिया। कथा सुनाकर भगवान महावीर ने श्रावकों से कहाश्रोताओ ! इस संसार में कुछ मनुष्य अपनी बुद्धिमानी से स्वयं की, समाज तथा राष्ट्र सुख-समृद्धि को विस्तार देते हैं, कुछ केवल रखवाले और कुछ ऐसे भी होते हैं मिली है, उसको भी व्यर्थ कर देते हैं। 31 समाप्त Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की अमर शिक्षाएँ -दशवै. ८/१६ अप्पमत्तो जये निच्चं । अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सावधानीपूर्वक प्रयत्नशील रहो। न बाहिरं परिभवे, अत्ताणं न समुक्कसे । - दशवै. ८/३७ बुद्धिमान व्यक्ति कभी दूसरों का तिरस्कार नहीं करता और न ही अपनी बड़ाई स्वयं करता है। उवसमेण हणे कोहं माणं मद्दवया जिणे । मायमज्जव भावेण लोभं संतोसओं जिणे । -दशवै. ८/३९ क्रोध को क्षमा से, अहंकार को नम्रता से, कपट को सरलता से और लोभ को सन्तोष से जीत लेना चाहिए। भगवान महावीर के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनायें जन्म : वि. पू. ५४२, चैत्र शुक्ला १३, ई. पू. ५९९, ३० मार्च जन्म स्थान : क्षत्रिय कुण्ड (कुण्डलपुर) माता : प्रियकारिणी त्रिशला पिता : महाराज सिद्धार्थ ३० वर्ष की उम्र में गृह त्याग कर ई. पू. ५६९ (मार्गशीर्ष कृष्णा १०) में दीक्षा ग्रहण की। साढे बयालीस वर्ष की उम्र में ऋजुबालुका नदी के तट पर ई. पू. ५५७ मई (वैशाख शुक्ला १०) को केवलज्ञान प्राप्त कर धर्म तीर्थ का प्रवर्त्तन किया। ७२ वर्ष की अवस्था में वि. पू. ४७० कार्तिक अमावस्या ई. पू. ५२७ (नवम्बर) पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया। भगवान महावीर का धर्मसंघ पूर्णतः समता और समानता के सिद्धान्त पर आत्म-साधना के लक्ष्य की ओर प्रवृत्त था, जिसमें क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र सभी वर्ण के स्त्री-पुरुष सम्मिलित थे। www.jalnelibrary.org Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वार्षिक सदस्यता पत्र मै. दिवाकर प्रकाशन आगरा। मान्यवर, राजधाजन गाया गांचर मैं आपके द्वारा प्रकाशित दिवाकर चित्रकथा का वार्षिक सदस्य बनना चाहता हूँ। सदस्यता शुल्क रु. एक सौ पचास मात्र (Rs. 150.00 Only) मैं ड्राफ्ट/एम. ओ. द्वारा भेज रहा हूँ। कृपया मुझे सदस्यता प्रदान कर नियमित रूप से चित्रकथा भेजने की कृपा करें। RPM बोजनका नाम Name (IN CAPITAL LETTERS) पता Address पिन FinM.O./D.D. No. - Date - - Bank - Amount. हस्ताक्षर Sign. वार्षिक सदस्यता: अगर आप 150.00 रुपये देकर वार्षिक सदस्य बनते हैं तो छपी हुई पुस्तकें तुरन्त आपको प्राप्त हो जायेंगी तथा छपने वाली पुस्तकें यथासमय रजिस्टर्ड डाक द्वारा आपके पते पर घर बैठे ही मिलती रहेंगी। आप दस पुस्तकों का मूल्य देकर ग्यारह पुस्तकें घर बैठे प्राप्त कर सकते हैं। साथ में प्राप्त होगा ३०.00 रुपये मूल्य का एक विशिष्ट उपहार। साथ ही नये प्रकाशनों की सूचना भी समय-समय पर आपको मिलती रहेगी। इस वर्ष में प्रकाशित होने वाली दिवाकर चित्रकथा की निम्नलिखित प्रमुख कड़ियाँ प्रकाशनाधीन हैं.क्षमादान भगवान ऋषभदेव णमोकार मन्त्र के चमत्कार • चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान महावीर की बोध कथाएँ राजकुमारी चन्दनबाला बुद्धि निधान अभयकुमार सिद्ध चक्र का चमत्कार भगवान शान्तिनाथ । भगवान महावीर (भाग एक) • भगवान महावीर (भाग दो) हमारे अन्य महत्वपूर्ण प्रकाशन सचित्र भक्तामर स्तोत्र 325.00 रुपये सचित्र णमोकार महामंत्र 125.00 रुपये • ILLUSTRATED NAMOKAR MAHAMANTRA RS. 125.00 •सचित्र कल्पसूत्र 500.00 रुपये सचित्र तीर्थंकर चरित्र 200.00 रुपये •सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र 500.00 रुपये .सचित्र अन्तकृद्दशासूत्र 425.00 रुपये .चित्रमय भक्तामर पॉकेट गुटका 18.00 रुपये DIWAKAR PRAKASHAN A-7, AWAGARH HOUSE, OPP. ANJNA CINEMA In Education Intewation. ROAD. AGRA-282F002atePHONEePTO562) 54328,51789 , Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बात : आपसे भी...... भगवान महावीर ने मनुष्य को सुख, शान्ति और आनन्दपूर्वक जीने के लिए जो मार्गदर्शक सूत्र दिये हैं, उनमें कुछ मुख्य सूत्र हैं-सद्ज्ञान, सद्-संस्कार और सदाचार ! ज्ञान सबका आधार है, ज्ञान प्राप्त होने पर ही मनुष्य के जीवन में संस्कार और सदाचार का प्रकाश फैलता है। इसलिए सबसे पहली बात है, हम अपनी संस्कृति, धर्म और इतिहास से जीवन्त सम्पर्क बनायें । उनका अध्ययन करें और फिर अपने परिवार को, युवकों, किशोरों और बालकों को ऐसा संस्कार निर्माणकारी साहित्य देवें, जो पढ़ने में रुचिकर, शिक्षाप्रद और ज्ञानवर्धक भी हो। हम इसी प्रकार का रुचिकर, सरल मनोरंजन से भरपूर और जैनधर्म एवं संस्कृति से सीधा सम्बन्ध जोड़ने वाला साहित्य आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं-"दिवाकर चित्रकथा" के रूप में ! जैन साहित्य के अक्षय कथा भण्डार में से चुन-चुनकर सबके लिए उपयोगी, पठनीय और रुचिकर कथाओं का चित्रमय प्रस्तुतीकरण, आपके लिए, आपके समस्त परिवार के लिए प्रस्तुत है। इन चित्रकथाओं को हिन्दी भाषा के साथ ही विदेशों में बसे लाखों जैनों के लिए अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत करने में हमारा सहयोग कर रहे हैं- JAINA (USA) तथा महावीर सेवा ट्रस्ट - बम्बई । हमें विश्वास है ये चित्रकथाएँ आपको पसन्द आयेंगी। जब आपको पसन्द हैं, तो फिर इसके वार्षिक सदस्य बनने में विलम्ब क्यों ? और अपनी पसन्द की लाभकारी योजना से अपने मित्रों, परिवारजनों को भी अवश्य जोड़िए ! वार्षिक सदस्यता फार्म भरकर शीघ्र ही भेजें। सेवाभावी प्रचारक तथा कमीशन पर कार्य करने वाले परिश्रमी प्रचारक बन्धु भी सम्पर्क करें। धर्मलाभ के साथ अर्थ का लाभ भी मिलेगा। जैन धर्म, संस्कृति और इतिहास के साथ सम्पर्क बनाइए मनोरंजन के साथ-साथ अपना ज्ञान भी बढ़ाइए ! 1, (अब तक प्रकाशित) चित्रमय कथाएँ ● क्षमादान • णमोकार मंत्र के चमत्कार भगवान महावीर की बोध कथाएँ बुद्धि निधान अभयकुमार प्रतिमास प्रकाशित होने वाली दिवाकर चित्रकथा के वार्षिक सदस्य बनें भगवान ऋषभदेव • चिन्तामणि पार्श्वनाथ राजकुमारी चन्दनबाला वार्षिक सदस्यता-१५०/- (एक सौ पचास रुपये मात्र) दिवाकर प्रकाशन → ए-७, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-२८२ ००२ फोन : (०५६२) ५४३२८ AO CAOSED Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हम सिर्फ शुद्ध स्वर्ण-रजत के आभूषण एवं मनोहा उतन ही नहीं बेचते, किन्तु हम देते भी हैं, जीवन को अलंकृत करने वाले मोती से उज्ज्व एवं हीरे से चमकदार शुद्ध विचार। आत्मा की आवाज राजा मेघरथ, (भगवान शान्तिनाथ पूर्वभव में) ने एक शरणागत कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर के अंग-अंग काट कर दे दिये। ● निरीह मूक पशुओं का करुण क्रन्दन सुनकर नेमिकुमार का हृदय द्रवित हो उठा और वे विवाह के लिए सजे तोरण द्वार से बिना ब्याहे ही लौट गये। • महान् तपस्वी धर्मरुचि अणगार ने, चीटियों का नाश न होने देने के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं की । श्रेणिक पुत्र महामुनि मेतार्य ने, शरीर एवं मस्तक पर बंधे गीले चमड़े की असह्य प्राणान्तक वेदना सहते हुए शरीर त्याग दिया- अपने निमित्त से होने वाली एक मुर्गे की हिंसा को टालने के लिए। सोचिए, विचारिए, आप और हम उन्हीं आत्म-बलिदानी, दयावीरों, धर्मवीरों, करुणावतारों की सन्तान हैं, फिर आज क्यों हमारी आँखों के सामने हमारी मातृभूमि पर, ऋषि मुनि तपस्वियों की तपो भूमि पर प्रतिदिन, हर सुबह लाखों, करोड़ों मासूम पंचेन्द्रिय प्राणियों की गर्दन काटी जाती है ? उनका रक्त बहाकर भूमि को अपवित्र किया जाता है उन्हें तड़पा-तड़पा कर दिल दहलाने वाली करुण चीत्कारों को अनसुना कर उनके शरीर के रक्त-मांस का क्रूर व्यापार किया जाता है ?? हैं !! मानव जाति की मित्र तुल्य, राष्ट्र की पशु सम्पदा पर क्रूर दानवीय अत्याचार हो रहे हैं और हम चुप इन राक्षसी कृत्यों को चुपचाप देखते सहते जा रहे हैं ? आखिर क्यों ? कहाँ सो गई हमारी करुणा ? क्यों मूर्च्छित हो गई है हमारी धर्म- बुद्धि ?? क्यों काठमार गया है, हमारे अहिंसक पुरुषार्थ को ?? उठिए ! संकल्प लीजिए ! अपने धर्म की, देश के गौरव की, मासूम पशु-पक्षियों की रक्षा कीजिए । उनकी हत्या, • हिंसा रोकने के लिए राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, नानक, गांधी के वीर पथ का अनुसरण कीजिए । जागिए ! जनता को जगाइए ! अहिंसा और करुणा की अनन्त शक्ति का चमत्कार पैदा कीजिए। करोंड़ों, करोड़ों जनता की एक पुकार । पशुओं पर नहीं होने देंगे अत्याचार | जहाँ विश्वास हो परम्परा है देश में बढ़ती हिंसा, कत्लखाने, शराबखाने बंद हो । हर घर में खुशी हो, हर व्यक्ति को आनन्द हो ॥ शाकाहार क्रान्ति के सूत्रधार रतनलाल सी. बाफना ‘नयनतारां' : सुभाष चौक, जलगाँव : फोन : २३९०३, २५९०३, २७३२२, २७२६८ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महामहिम राष्ट्रपति डा. शंकरदयालमी शर्मा द्वारा दिवाकर प्रकाशन के सचित्र प्रकाशनों की प्रशंसा राष्ट्रपति महोदय को अपने विशिष्ट प्रकाशन भेंट करते हुए श्रीचन्द सुराना 'सरस' तथा दिवाकर चित्रकथा के प्रकाशक संजय सुराना आदि दिनांक 22 दिसम्बर 1994 को पूर्वान्ह में राष्ट्रपति भवन के मार्निंग हाल में भारत के राष्ट्रपति महोदय डा. शंकरदयालजी शर्मा से दिवाकर प्रकाशन, आगरा के संस्थापक प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीचन्द सुराना 'सरस' तथा दिवाकर चित्रकथा के प्रकाशक संजय सुराना आदि विशिष्ट व्यक्तियों ने मुलाकात की तथा भक्तामर स्तोत्र, सचित्र णमोकार महामंत्र आदि अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विशिष्ट प्रकाशनों का सैट भेंट किया। श्री संजय सुराना ने दिवाकर चित्रकथा की प्रकाशित पुस्तकें भेंट की। इन सुन्दर और नयनाभिराम प्रकाशनों को भावविभोर होकर राष्ट्रपति महोदय: बहुत देर तक देखते रहे। फिर प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा-इस प्रकार के उत्कृष्ट साहित्य की आज बहुत जरूरत है। मेरे पिताजी के पास भी अनेक व्यक्ति भक्तामर स्तोत्र पढ़ने के लिए आते थे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा महिला कांग्रेस की अध्यक्षा कुमारी गिरिजा व्यास ने श्रीचन्द सुराना की साहित्य सेवाओं 2 के विषय में राष्ट्रपतिजी को परिचय दिया। राष्ट्रपति महोदय द्वारा समागत अतिथियों का भारतीय संस्कृति के अनुरूप सुन्दर आतिथ्य-सत्कार किया गया।