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भगवान महावीर की बोध कथाएँ
यक्ष ने कहा -
तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें सुरक्षित रूप से यथास्थान पहुंचा दूंगा, किन्तु । ध्यान रखना, देवी तुम्हारे पीछे दौड़ी आयेगी,
वह बहुत भय व प्रलोभन दिखायेगी। यदि तुम उसके मोह जाल में फँस गये,और उसकी ओर मुड़कर भी देख लिया तो मैं तुम्हें अपनी पीठ से उतारकर समुद्र में फैंक दूंगा।
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इतना कहकर यक्ष ने उन्हें अपनी पीठ पर बैठाया और उड़ चला।
इधर रत्ना देवी जब वापस पहुंची तो महल को सुनसान देखकर चौंकी। उसने अपने अवधि ज्ञान का प्रयोग किया।
ओह! तो वे दोनों यक्ष की मदद पसे यहाँ से निकलने का प्रयत्न कर रहे हैं। मुझे तुरन्त ही इन्हें
रोकना चाहिये।
रत्नादेवी उनके पीछे दौड़ी। झूठे प्यार भरे मीठे शब्दों में पुकारने लगी
मिरे प्राण प्रिय! मुझे छोड़कर
मत जाओ। मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकूँगी। मैं जीवन भर तुम्हारी दासी बनकर रहूँगी।। 16
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