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________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ od C एक बार रत्नादेवी को लवण समुद्र की देखभाल करने के लिये जाना पड़ा, उसने उन दोनों भाईयों को बुलाकर कहा मैं कुछ दिनों के लिए तुमसे दूर जा रही हूँ। तुम दोनों यहाँ सुख से रहो, खाओं, पीओ, बाग-बगीचों में घूमो, परन्तु ध्यान रखना। जिनपाल और जिनरक्षित देवी के कठोर प्रतिबन्धों से छटपटाये हुये थे। आज देवी की अनुपस्थिति में उन्हें स्वतन्त्रता से विचरण करने का अवसर जो मिल गया। Jain Education International भैया, पहले पूर्व के बागों की तरफ चलते हैं। आज हम जी भरकर स्वतन्त्रता पूर्वक घूमेंगे। इस द्वीप के दक्षिण दिशा के जंगलों में एक भयंकर विषधर रहता है, अतः उधर, कभी मत ७ जाना। बाकी तीनों ओर बाग बगीचे हैं। जहाँ भी जाना चाहो जा सकते हो। घूमते-घूमते उन्हें देवी की बात याद आई और उनके मन में दक्षिण दिशा में जाने की जिज्ञासा जाग उठी। DPK जिन रक्षित ! आओ दक्षिण दिशा के वन की तरफ चलें। देखें उधर क्या है?. रत्नादेवी के आने से पहले ही वापस आ जायेंगे उसे मालूम ही नहीं पड़ेगा। A - For Private 1 3 ersonal Use Only D और दोनों दक्षिण दिशा के जंगल की तरफ चल दिये। www.jainelibrary.org
SR No.002805
Book TitleMahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkar Muni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size22 MB
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