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________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ रत्नादेवी उन्हें बड़े स्नेहपूर्वक अपने उसकी बात सुनकर जिनपाल और मिनरक्षित | राजमहल में ले गई। विविध प्रकार के व्यंजन स्तब्ध रह गये। और मदिरा पीने को दी। ओह ! यह तो बड़ी निर्लज्ज तुम यहाँ मेरे AAL है। साथ आनन्दपूर्वक उरहो,और मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लो। Urdood 00000 नहीं! नहीं ! हमें यह बात स्वीकार नहीं है। देवी ने उन्हें अपनी नंगी तलवार दिखाते हुये कहा ANया तो मेटा प्रस्ताव स्वीकार PAN करो अन्यथा मैं अभी तुम्हारे सिर धड़ से अलग कर दूँगी। भय का मारा मनुष्य क्या नहीं करता। दोनों ने । देवी की बात स्वीकार कर ली और वहाँ देवी । के साथ रहने लगे। अब हम रत्नादेवी की आज्ञा बिना कहीं जा · नहीं सकते। उसने हमें सुखों का लालच देकर अपना गुलाम बना लिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002805
Book TitleMahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkar Muni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size22 MB
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