SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ दक्षिण दिशा के वन में प्रवेश करते ही उन्होंने फिर भी जिज्ञासा उन्हें आगे बढ़ा ले गई। कुछ आगे एक भयंकर शमशान देखा। चारों ओर हड्डियों। |चले, तभी एक शूली दिखाई दी जिस पर एक मनुष्य के ढेर लगे थे। भयंकर दुर्गन्ध आ रही थी। यह टंगा पीड़ा से चिल्ला रहा था। यह देख दोनों के देख उनके पाँव भय से लड़खड़ाने लगे। आश्चर्य का पार न रहा, उन्होंने निकट जाकर पूछा भाई! यह क्या विकट चक्र है? तुम्हारी यह दुर्दशा किसने की? S MLALAN MORRHANDNANKS) उसने बताया ANI यह क्रूर रत्नादेवी का शमशान है। मैं उसी के माया जाल का शिकार हूँ। तुम यहाँ कैसे फँस गये! मैं कांकदी नगरी का। व्यापारी हूँ। जहाज टूट। जाने से भटकता हुआ रत्नादेवी के चंगुल में फँस गया। एक दिन उसने छोटे से अपराध से क्रुद्ध होकर मुझे इस शूली पर चढ़ा दिया। यहाँ पर आने वाला हर मनुष्य उसके माया जाल में फंसता है, और अन्त में उसकी यही दुर्दशा होती है। 3 14 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002805
Book TitleMahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkar Muni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy