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भगवान महावीर की बोध कथाएँ
बनिया बोला
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जानते हो, धन कमाना कितना कठिन है। एक-एक काकिणी के लिए कितना खून-पसीना बहाना पड़ता है। मैं ऐसा मूर्ख नहीं हूँ कि अपनी काकिणी भी जाए और पता भी न चले कि कहाँ गई? अभी
जाकर ढूंढकर काकिणी वापस लाता हूँ।
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साथियों ने उसका जिही स्वभाव देखकर ज्यादा विवाद नहीं किया। बोले
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हम तो चलते हैं, अगले गाँव में तुम्हारा इंतजार करेंगे, जल्दी लौट आना।
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साथी आगे निकल गए। बनिया वापस पिछले गाँव की ओर चल पड़ा। उसके पास हजार स्वर्ण-मुद्राएँ थीं। उसने सोचा
इतनी जोखिम और इतना बोझ, वहाँ ले जा कर क्या करूंगा? अभी उलटे पाँव तो लौट
आता हूँ। यहीं जंगल में कहीं छिपा देता हूँ। लौटता हुआ ले जाऊँगा।
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