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________________ भगवान महावीर की अमर शिक्षाएँ -दशवै. ८/१६ अप्पमत्तो जये निच्चं । अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सावधानीपूर्वक प्रयत्नशील रहो। न बाहिरं परिभवे, अत्ताणं न समुक्कसे । - दशवै. ८/३७ बुद्धिमान व्यक्ति कभी दूसरों का तिरस्कार नहीं करता और न ही अपनी बड़ाई स्वयं करता है। उवसमेण हणे कोहं माणं मद्दवया जिणे । मायमज्जव भावेण लोभं संतोसओं जिणे । Jain Education International -दशवै. ८/३९ क्रोध को क्षमा से, अहंकार को नम्रता से, कपट को सरलता से और लोभ को सन्तोष से जीत लेना चाहिए। भगवान महावीर के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनायें जन्म : वि. पू. ५४२, चैत्र शुक्ला १३, ई. पू. ५९९, ३० मार्च जन्म स्थान : क्षत्रिय कुण्ड (कुण्डलपुर) माता : प्रियकारिणी त्रिशला पिता : महाराज सिद्धार्थ ३० वर्ष की उम्र में गृह त्याग कर ई. पू. ५६९ (मार्गशीर्ष कृष्णा १०) में दीक्षा ग्रहण की। साढे बयालीस वर्ष की उम्र में ऋजुबालुका नदी के तट पर ई. पू. ५५७ मई (वैशाख शुक्ला १०) को केवलज्ञान प्राप्त कर धर्म तीर्थ का प्रवर्त्तन किया। ७२ वर्ष की अवस्था में वि. पू. ४७० कार्तिक अमावस्या ई. पू. ५२७ (नवम्बर) पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया। भगवान महावीर का धर्मसंघ पूर्णतः समता और समानता के सिद्धान्त पर आत्म-साधना के लक्ष्य की ओर प्रवृत्त था, जिसमें क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र सभी वर्ण के स्त्री-पुरुष सम्मिलित थे। For Private & Personal Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.002805
Book TitleMahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkar Muni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size22 MB
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