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भगवान महावीर की बोध कथाएँ दूसरी पुत्रवधु भोगवती ने सोचा
| और भोगवती ने धान के दाने छीलकर खा लिये।
छ (ससुर जी ने जब इतना बड़ा समारोह करके दाने दिये हैं, तो जरूर कोई बात होगी। हो सकता है यह कोई सिद्ध पुरुष का प्रसाद ही हो, इन्हें तो
खा लेना चाहिये।
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तीसरी बहु रक्षिका का मन भी कुछ इसी - तरह के विचारों में लगा थाहा
ससुर जी ने इन्हें सुरक्षित रखने को कहा है तो अवश्य ही यह चमत्कारी दाने होंगे।
वह कुछ अधिक समझदार थी, उसने दाने एक मखमली कपड़े में बाँधकर अपनी तिजोरी में रख दिये। व TCOOR
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