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भगवान महावीर की बोध कथाएँ
कुछ दिन बाद धन्ना ने अपने समस्त परिजनों को एक विशाल प्रीतिभोज दिया। भोज के बाद परिजनों के समक्ष उसने अपनी पुत्र वधुओं से कहा
आज मैं तुम्हें ये धान के पाँच दाने दे रहा हूँ। इन्हें सम्भाल कर रखना। मैं जब भी वापिस माँगू मुझे लाकर दे देना।
पहली पुत्र वधु उज्झिका अपने स्वसुर के इस व्यवहार पर मन ही मन हँसने लगी
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त्रण
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धान के पाँच दाने सम्भाल कर रखने से क्या फायदा घर में अनेक कोष्ठागार
धान से भरे पड़े हैं। जब ससुर जी माँगेंगे मैं दूँगी।
पुत्र वधुओं ने स्वसुर से सम्मानपूर्वक दाने ले लिये और अपने-अपने कमरों में जाकर विचार करने लगीं।
उसने उन दानों को फैंक दिया।
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