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भगवान महावीर की बोध कथाएँ
भगवान महावीर अपने समय के लोकनायक थे। उन्होंने धर्म के सम्बन्ध में चली आ रही मान्यताओं एवं परम्पराओं में जो क्रान्तिकारी परिवर्तन किये, उनमें एक मुख्य परिवर्तन था- सभी जाति एवं वर्णों के लोगों को धर्म साधना करने का तथा स्त्रियों एवं शूद्रों को धर्मशास्त्र पढ़ने का समान अधिकार। इसी कारण उन्होंने युगों से चली आ रही संस्कृत भाषा में धर्मशास्त्र रचने की परम्परा को तोड़ा और अपना उपदेश (प्रवचन) उस समय की लोकभाषा प्राकृत- अर्द्धमागधी में दिया। लोकभाषा में उपदेश देने के कारण समाज के सभी वर्ग और सभी उम्र के लोग उनके उपदेश सुनते-समझते और उनको अपनी शक्ति के अनुसार ग्रहण भी करते।
भगवान महावीर की उपदेश शैली समाज के सभी वर्ग को रोचक एवं आकर्षक लगती थी। धर्म की गम्भीर से गम्भीर बात वे छोटे-छोटे व्यावहारिक उदाहरणों एवं दृष्टान्तों के द्वारा इतनी सहज और सरल शैली में समझाते थे कि वह सीधी श्रोताओं के हृदय को स्पर्श कर जाती थी। भगवान महावीर के सभी उपदेश जो आज हमें उपलब्ध हैं, अर्द्धमागधी (प्राकृत) भाषा में हैं और उन्हें 'आगम' या गणिपिटक कहा जाता है।
हमने यहाँ पर भगवान महावीर के अन्तिम उपदेश, उत्तराध्ययन सूत्र तथा छठा अंग आगम ज्ञातासूत्र की कुछ बोध कथाओं को संकलित कर प्रस्तुत किया है। हमें विश्वास है यह पाठकों के लिए जितनी रोचक होगी, उतनी ही बोधप्रद भी सिद्ध होगी।
सैकड़ों पुस्तकों के रचयिता स्व. उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी द्वारा लिखित 'जैन कथाएँ' के आधार पर विद्वान् आचार्य श्री देवेन्द्र मनि जी ने इस पस्तक का सम्पादन किया है। उनकी उदार भावना के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ।
लेखक :
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि
संयोजन एवं प्रकाशन व्यवस्था :
संजय सुराना
सम्पादक :
आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि
चित्रण :
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