Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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भगवान महावीर की बोध कथाएँ
उसने इधर-उधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया। बनिये की यह हरकत दूर खड़े एक व्यक्ति ने देख ली/ एक वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर स्वर्ण मुद्राओं | वह पीछे से आया, मिट्टी हटाई, तो स्वर्ण-मुद्राओं से की थैली उसमें रख दी। ऊपर मिट्टी डाल दी। भी हुई थैली दिखाई दी। बस उसका तो रोम-रोम
पुलकित हो उठा।
भगवान् ने मेरे लिए ही ये स्वर्ण-मुद्राएँ यहाँ छिपवाई हैं।
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वृक्ष पर निशान बनाकर गाँव की ओर चल पड़ा।
वह स्वर्ण-मुद्राएँ लेकर अपने घर चला गया।
शाम तक काकिणी ढूँढते-ढूँढते वह परेशान हो गया।
| बनिया, जिस सराय में ठहटा था, उस सराय में पहुंचा और लोगों से पूछ-ताछ करने लगा।
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भाई! तुमने मेटी एक काकिणी देखी है क्या?
नहीं भाई! हमें नहीं मालुम।
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