Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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थोड़े के लिये सब कुछ खो दिया
एक बनिया विदेश से एक हजार 'स्वर्ण-मुद्रा' कमा कर स्वदेश लौट रहा था। उसने रास्ते में खर्च के लिए एक स्वर्णमुद्रा (मोहर) भुनवाकर उसकी अस्सी काकिणी ले लीं। प्रतिदिन एक-एक काकिणी# खर्च करते-करते अन्त में उसके पास एक काकिणी बच गई, और उसे वह कहीं बीच के गाँव में जहाँ ठहरा था, भूल आया। मार्ग में कुछ दूर चलने के बाद उसको याद आया तो वह अपने साथ वालों से बोला
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हम जहाँ ठहरे थे। वहाँ मैं एक काकिणी भूल आया हूँ। अभी वापस जाकर ढूँढ़ कर लाऊँगा।
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# पुराना सिक्का एक पैसे के बराबर ।
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गजब
हो गया?
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क्यों क्या
हुआ भाई?
साथियों ने उसको समझाया।
जाने भी दो, एक काकिणी के लिए इतनी दूर जाओगे, फिर आओगे, एक दिन व्यर्थ ही चला जाएगा।
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