Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 23
________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ अगले दिन राजा ने मन्त्री से विनोद के स्वर में । पूछाBIRH मन्त्री ! तुम अकेले ही इतना मधुर एवं शीतल जल | महाराज! अपराध पीते रहे हो? हमें तो कभी क्षमा हो। यह जल नहीं पिलाया। कहाँ से आता नगर के बाहर वाले है, यह जल? NS गन्दे नाले का है। GOANE ROOOOD REARS Hoes AMIRMIRSTALE राजा को मन्त्री की बात पर विश्वास नहीं आया। उसने उत्तेजित होकर कहा मन्त्री हमसे मजाक मत करो। ठीक-ठीक बताओ सच क्या है? उस गन्दी खाई का जल ऐसा कैसे हो सकता है? महाराज! असम्भव कुछ नहीं है। यह सब हो सकता है, और मैंने किया है। आप चाहें तो इसकी शोधन क्रिया मेरे घर पर पधारकर देख सकते हैं। HOOSION OGLESO लढा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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