Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 21
________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ | किन्तु मन्त्री सुबुद्धि, शान्त और गंभीर बना रहा। मन्त्री ने तटस्थ भाव से कहाराजा को बड़ा आश्चर्य हुआ, उसने मन्त्री से पूछा महाराज! पदार्थ परिवर्तनशील हैं। मन्त्रीवर ! क्या बात है? इतना वस्तुओं के संयोग और परिस्थिति के स्वादिष्ट भोजन बना है, सभी लोग अनुसार वह कभी प्रिय और कभी दिल खोलकर प्रशंसा कर रहे अप्रिय लगते हैं। इसमें प्रशंसा और हैं और आप हैं कि मौनव्रत लिये निन्दा की क्या बात है? बैठे हैं? 200000cd GOOTA (OICONCE ( 2000 O ACOCIOIDh CGC COOOK KISA oO | अपनी बात कट जाने पर राजा मन ही मन खिसिया उठा। एक दिन राजा जितशत्रु दरबारियों के साथ घूमता हुआ नगर के बाहर गया। वहाँ उसे गन्दे पानी का एक नाला दिखाई दिया, जिसमें से मरे, सड़े हुए जानवरों जैसी भयंकर दुर्गन्ध आ रही थी। सब लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगे। राजा ने भी घृणा के साथ नाक सिकोड़ते हुये मंत्री से कहा N सुबुद्धि! यह पानी कितना गन्दा और बदबूदार है। इसकी भयंकर दुर्गन्ध से तो मेरा सिर फटने लग गया। छी! छी! 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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