Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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निराश हो कर मुँह लटकाए लौट आया। जब वह वृक्ष के पास पहुँचा, तो उसने गड्ढा खुदा हुआ देखा, और स्वर्ण-मुद्राएँ गायब थीं।
भगवान महावीर की बोध कथाएँ
हे! भगवान यह क्या हो गया ?
वह रोता पीटता साथ वालों के पास पहुँचा, तो सभी लोग उसकी मूर्खता पर उसे धिक्कारने लगे।
मूर्ख!
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पहले ही मना किया हा था, फिर भी तू नहीं माना। अब रोने से क्या होगा?
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बस, और क्या था? उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया। वह सिर पीटने लगा
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हाय! मेरी जीवन भर की कमाईव्यर्थ ही चली
गई। अब मैं कौन-सा मुँह
ले कर घर जाऊँगा?
बाल-बच्चे क्या खाएँगे?
इस प्रकार वह रो-रो कर अपने को कोसने लगा।
भगवान महावीर ने कथा का अर्थ समझाते हुए कहा।
बन्धुओं! इसी तरह जो व्यक्ति थोड़े से लाभ अथवा सुखों के
लिये इस अमूल्य मानव जीवन को दाँव पर लगा देते हैं, वह उसी मूर्ख व्यापारी की तरह सब कुछ खो कर अन्त में पछताते हैं।
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समाप्त उत्तराध्ययन सूत्र
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