Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 22
________________ मन्त्री ने शान्त और विनीत भाव से कहा भगवान महावीर की बोध कथाएँ Soor Jain Education International शिव "महाराज! इसमें घृणा की क्या बात है ? पदार्थ का स्वरूप तो सदा बदलता रहता है। जो कभी स्वच्छ और निर्मल जल था, वही गन्दा बन गया। यही जल वापस स्वच्छ और निर्मल भी बन सकता है। फिर राग-द्वेष क्यों ? मन्त्री का यह तत्व ज्ञान राजा को रास नहीं आया। वह कुछ उत्तेजित स्वर में बोला नहीं मन्त्री, तुम भ्रम में हो । गन्दी चीज कभी अच्छी नहीं बन सकती। और यह बात-बात में क्या अपना तत्व-ज्ञान बघारते रहते हो? यह कोरा तत्व ज्ञान तुम्हें कभी धोखा दे जायेगा। बात बढ़ती देख मन्त्री ने मौन साध लिया। उसका अपना बुद्धि सूत्र था-बोलना कम, करना अधिक। कई सप्ताह बीत गये। एक दिन सेवक ने राजा को भोजन के समय अत्यन्त मधुर शीतल सुगन्धित जल दिया। जल पीकर राजा ने सेवक से पूछा ऐसा मधुर शीतल जल हमने पहले कभी नहीं पिया। आज कहाँ से आया है? महाराज! यह जल सुबुद्धि मन्त्री के घर से आपके लिए भेजा गया है। QUO 20 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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