Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 13
________________ भगवान महावीर की बोध कथाएँ सागर की लहरों के साथ खेलता हुआ उनका जहाज लवण समुद्र की तरफ चला जा रहा था। अचानक आकाश में काले-काले बादल घिर आये, बिजली चमकने लगी और चारों ओर अंधकार छा गया। समुद्र में भयंकर तूफान उठने लगा। ऊँची-ऊँची लहरों में जहाज तिनके की तरह डोलने लगा। Jain Education International हे भगवान ! हमारी रक्षा करो। इतना भयंकर तूफान हमने आज तक नहीं देखा। लहरों में उछलता हुआ जहाज एक बड़ी चट्टान से जा टकराया और टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गया। दोनों भाई अपनी प्राण रक्षा के लिये हाथ पैर मारने लगे। जहाज का एक टूटा तख्ता उनके हाथ लग गया। उसी के सहारे तैरते तैरते वे एक किनारे पर जा पहुँचे। भाग्य से वह रत्नद्वीप का तट था। उस द्वीप की स्वामिनी रत्नादेवी बड़ी ही दुष्ट प्रकृति की थीं। जब उसे अवधिज्ञान द्वारा दोनों भाईयों के द्वीप पर पहुँचने का पता चला तो वह आकाश मार्ग से उड़कर उनके पास पहुँच गई। bood DALE Aalkovate Loos तुम्हारा रत्नद्वीप पर स्वागत है। चलो मेरे साथ मेरे महल में चलो। 11 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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