Book Title: Mahavira ki Bodh Kathaye Diwakar Chitrakatha 005
Author(s): Pushkar Muni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 6
________________ चौथी बहू बड़ी चतुर थी। वह इस उपक्रम की गहराई में उतरने लगी। भगवान महावीर की बोध कथाएँ 833 पिताश्री अत्यन्त बुद्धिमान है। उन्होंने पांच दाने देने के लिये ही तो इतना बड़ा समारोह व्यर्थ नहीं किया होगा? अवश्य ही इन दानों के पीछे कोई विशेष प्रयोजन होना चाहिये। P रोहिणी ने अपने विश्वासपात्र सेवक चतुरसेन को बुलायाचतुरसेन, तुम यह दाने लेकर मेरे पिता के घर जाओ। उनसे कहो कि वे इन दानों की अलग क्यारियों में विशेष ढंग से खेती कराने की व्यवस्था करायें। Jain Education International & For Private & Personal Use Only उनके वापस मांगने पर ये पांच ही दाने लौटाये तो क्या लौटाये? इसके बदले उन्हें पांच लाख या पांच करोड़ दाने दिये जा सके, मुझे ऐसा कोई उपाय करना होगा। चतुरसेन दाने लेकर रोहिणी के पिता के घर पहुँचा और उनकी बेटी का संदेश दिया। पिता ने उन दानों की अलग से खेती की व्यवस्था करवा दी। www.jainelibrary.org

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