Book Title: Mahavira Vani Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 13
________________ 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26. 27. समय और मृत्यु का अंतर्बोध अलिप्तता और अनासक्ति का भावबोध एक ही नियम : होश सारा खेल काम-वासना का ये चार शत्रु अकेले ही है भोगना यह निःश्रेयस का मार्ग है आप ही हैं अपने परम मित्र साधना का सूत्र : संयम विकास की ओर गति है धर्म आत्मा का लक्षण है ज्ञान मुमुक्षा के चार बीज पांच ज्ञान और आठ कर्म छह लेश्याएं : चेतना में उठी लहरें पांच समितियां और तीन गुप्तियां कौन है य ? राग, द्वेष, भय से रहित है ब्राह्मण अलिप्तता है ब्राह्मणत्व वर्णभेद जन्म से नहीं, चर्या से भिक्षु की यात्रा अंतर्यात्रा है अस्पर्शित, अकंप है भिक्षु भिक्षु कौन ? कल्याण-पथ पर खड़ा है भिक्षु पहले ज्ञान, बाद में दया संयम है संतुलन की परम अवस्था अंतस-बाह्य संबंधों से मुक्ति संन्यास प्रारंभ है, सिद्धि अंत Jain Education International अनुक्रम (अप्रमाद सूत्र : 1) (अप्रमाद सूत्र : 2) (प्रमाद-स्थान- सूत्र : 1 ) (प्रमाद-स्थान- सूत्र : 2 ) (कषाय-सूत्र ) (अशरण-सूत्र ) (पंडित - सूत्र ) (आत्म-सूत्र: 1 ) (आत्म-सूत्र : 2 ) (लोकतत्व - सूत्र : 1) (लोकतत्व-सूत्रः 2 ) (लोकतत्व - सूत्र: 3 ) (लोकतत्व - सूत्र : 4 ) (लोकतत्व-सूत्र : 5 ) (लोकतत्व-सूत्र : 6 ) (पूज्य-सूत्र ) (ब्राह्मण - सूत्र : 1 ) (ब्राह्मण-सूत्र : 2 ) (ब्राह्मण-सूत्र: 3 ) ( भिक्षु-सूत्र : 1 ) (भिक्षु-सूत्र : 2 ) ( भिक्षु-सूत्र: 3 ) ( भिक्षु-सूत्र : 4 ) (मोक्षमार्ग-सूत्र : 1 ) (मोक्षमार्ग-सूत्र : 2) (मोक्षमार्ग- सूत्र : 3 ) (मोक्षमार्ग - सूत्र : 4 ) XI For Private & Personal Use Only 1 से 20 21 से 38 39 से 56 57 से 76 77 से 96 97 से 116 117 से 138 139 से 156 157 से 176 177 से 198 199 से 224 225 से 242 243 से 270 271 से 290 291 से 312 313 से 336 337 से 356 357 से 380 381 से 400 401 से 420 421 से 440 441 से 462 463 से 484 485 से 506 507 से 530 531 से 550 551 से 570 www.jainelibrary.org

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