Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09 Author(s): Tarachand Dosi and Others Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan View full book textPage 6
________________ ( ४ ) 9 श्रद्यं प्रतिज्ञा निर्वाही, द्वितीयं प्रकृतिः स्थिराः । तृतीयं प्रौढ वचनं चतुः प्रज्ञा प्रकर्षवान् ॥ पंचमं प्रपंचज्ञ, षष्टं प्रवल मानसम् । सप्तम् प्रभुताकांक्षी, प्राग्वठे पुर सप्तकम् || सात गुण इस प्रकार हुए ( १ ) प्रतिज्ञा को दृढ़ता पूर्वक पालना । ( २ ) धैर्यता और शान्त चित से कार्य करना । (३) प्रौढ़ वचन - गांमीर्य, प्रिय और यथेष्ट वचन कहना | ( ४ ) बुद्धिमता - दीर्घदर्शिता । (५) प्रपंचज्ञ - साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति में कुशलता । (६) मन की मजबूती रखकर वीरता दिखाना । (७) प्रभुताकांक्षी - महत्व के कार्य कर प्रभुता प्राप्त करना | जिन सात गुणों का बरदान अम्बिका ने दिया और उनकी ज्ञाति के वीरों को उसी प्रकार निभाया जिससे उनकी कीर्ति संसार में हो गई अतएव ज्ञाति का गौरव बढ़ाने वाले सज्जनों में से कुछ मनुष्यों का उल्लेख नीचे करते हैं - दूसरी सदी में जावड़शा और भावड़शा हुए जिन्होंने शेत्रुंजय का जीर्णोद्वार कराया । आठवी सदी में वीर नीना और लेहरी हुए । जो पाटणाधीश वनराज चावड़ा के महामात्य सेनाधिपति रहे। इन्हीं के कुटुम्बी वीर विमलशाह, ग्यारवी सदी में महा शूरवीर दानेश्वरी हुए। जिनकी उदारता के नमूने और संसार आश्रय में से एक आबू का विमलवसहि नामक मन्दिर आज तक मौजूद है । विमलशाह की वीरता जगत् प्रसिद्ध है इनके भय से अठारा सौ ग्राम का नाथ धाराधिप राजा भोज भाग गया और उसने सिन्ध का शरणा लिया । शाकंभरी मरुस्थल, मेवाड़, जालौरादि के सब राजाओं को जीत कर एक छात्रपति राजा का यश प्राप्त किया । शमनगर के बारह सुलतानों पर हमला किया और उनको पराजय कर सबको अपने आधीन बनाए। यहां तक कि देवताओं को भी अपने बाहुबल से वश किया ।Page Navigation
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