Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09 Author(s): Tarachand Dosi and Others Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan View full book textPage 5
________________ पित्तल मई जिन बिम्ब बन वाए, वह भामा शाह था। स्वर्गीय हुआ अति नाम पा, जिन धर्मरत आगाह था ॥१६॥ इतिहास का अज्ञान यह, सब अनिष्टों की खान है। इतिहास ज्ञान बिना न होता, ज्ञाति क्षेत्र महान है ॥२०॥ दस बीस और चौबीस, अट्ठाईस को अब छोड़ दो। हम ऊँच हैं वे नीच हैं, इस ख्याल को अब तोड़ दो ॥२१॥ अब कह रहा तुम से जमाना, चेत कर चलना सही। कर संगठन लो जाति का, नहिं जान अब तुम में रही ॥२२॥ हे दयानिधि, विनती यही, सद् बुद्धि का संचार हो । हैं प्राग्वाट समान सब ही, सम्मिलन परचार हो ॥२२॥ पौरवाल-पौरवाड़ सम्पादकीय विभाग पौरवाड़-यह प्राग्वद ज्ञाति का अपभ्रंश शब्द है। प्राग्वट् ज्ञाति का मूल स्थान-प्राग्वट्पूर जो गंगा नदी के किनारे पर एक प्राचीन नगर था। वाल्मीक, रामायण में इस नगर का उल्लेख मिलता है। जब से प्राग्वट्पूर के वासी राजपुताने में आये तब से वे प्राग्वट कहलाने लगे। उनके साथ २ ब्राह्मण भी'राजपुताने में भा बसे। जब पद्मावती नगरी में स्वयंप्रमशरी ने जिन राजपूतों को उपदेश द्वारा जैनी बनाये उस समय उनके साथ आये हुए ब्राह्मणों ने भी मरीजों को मर्ज की कि हे प्रभु! हमने जैन धर्म अंगीकार किया प्रतएव हमारा नाम भी चिसस्थाई हो ऐसा प्रबन्ध करावें । इस पर सूरीजी ने प्राग्वद वंश की स्थापना की। उसका अपभ्रंश शब्द पौरवाई अथवा पोरवाल हुआ। इनकी कुलदेवी अखीका है जिसने प्रसन्न होकर पौरवाड़ों को सात दुर्ग दिये और इसी कारका उनमें बात गुण प्रकट हुए। विमल चरित्र में कहा है- .. सप्तदुर्ग प्रदानेन गुण सप्तक रीषणात् । पुट सप्तक वंतोऽपि प्रागवट ज्ञाति विश्रुता ।।Page Navigation
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