________________ TION C. C.DC. COM OTOXEMOTORAN G.EG:06.03.28.2G. . SPONSTIN प्रकाशक की ओरसे पाठकोंके कर कमलोमें यह पुस्तक रखते हुए हम आनंदका अनु. भव करते हैं। श्लोकबद्धविक्रमचरित्रके मूल कर्ता श्रीअध्यात्मकल्पद्रुम' और 'श्रीसंतिकरं स्तोत्र' आदि अनेक ग्रंथप्रणेता ‘कृष्णसरस्वती' बिरुदधारक परमपूज्य जैनाचार्य श्रीमद् मुनिसुंदरसूरीश्वरजी महाराज साहेबके शिष्यरत्नं पू. पन्न्यासजी श्रीशुभशीलगणिवर्य महाराज हैं। उन्होने विक्रमसंवत् 1490 (वीर सं. 1960) में स्थंभनतीर्थ-खंभातमें संस्कृत काव्यरूपमें रचना की हैं उसमें रोमाञ्चक अनेक कथायें, तथा नीति और उपदेशके अनेकानेक श्लोकोंसे ठोस भरा हुआ है व जिज्ञासु सज्जनोंको अति उपकारक होगा इस आशयसे नीति और उपदेशके बहोतसे श्लोक इस अनुवादमें भी अवतरण कीये गये है। . .. हिन्दीभाषा के संबोधकः-शासनसम्राट् तपागच्छाधिपति / प्राचीन अनेकानेक तीर्थोद्धारक, न्याय-व्याकरण आदि अनेक ग्रन्थके रचयिता पू. भट्टारक-आचार्य श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजी म.सा. * के शिष्य शास्त्रविशारद कविरत्न पू. आचार्य श्री विजयामृतसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्य पू. मुनिवर्य श्रीरवान्तिविजयजी म. के शिष्य साहित्यप्रेमी पू. मुनिराजश्री निरंजनविजयजी महाराजश्रीने अत्यन्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org