Book Title: Mahapurana Part 4
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 3
________________ जिसमें भूतबली पुष्पदन्त और धरषेणाचार्य ने पटूखण्डागम की रचना की है। अतः उसकी भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन वस्तुतः पूरे युग की भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन है। इसी प्रकार श्वेताम्बरों के आगमों की प्राकृत के भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन के निष्कर्षों का प्रकाशन एक ऐतिहासिक आवश्यकता है। उसके वाद आती है शौरसेनी और दाराष्ट्री प्राकृतों की प्रवृत्तियों के वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता। इस देश में सम्प्रदायों के मिलन और विश्व मानवतावाद की बातें बहुत होती हैं, परन्तु ऐसे महानुभाव कितने हैं जो इस दिशा में गहरी रुचि रखते हैं ? जो हैं उनमें से अधिकांश के पास साधनों का अभाव है। अतः उन साधन-सम्पन्न श्रीमानों, संस्थापकों से मेरा अनुरोध है कि भाषा के खाते में जो कुछ उनके पास है उसे यदि पूरी प्रामाणिक व्यवस्था के साथ वे उपलब्ध करा सकें, तो यह उनका अविस्मरणीय प्रदेय होगा। ऐसा किसी पर कोई दबाव नहीं है, सिर्फ अनुरोध ही कर सकता हूँ। प्रस्तुत कृति के प्रकाशन के लिए मैं सदा की तरह ज्ञानपीट के निदेशक भाई लक्ष्मीचन्द्र जी, ग्रन्धमाला सम्पादक श्रद्धेय पं, कैलाशचन्द्र जी और डॉ. ज्योतिप्रसाद जी के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। ज्ञानपीट के प्रकाशन अधिकारी डॉ. गुलाबचन्द्र जैन ने शीघ्र प्रकाशन के लिए जो अथक प्रयास किया है उसके लिए वे साधुवाद के सच्चे पात्र हैं। -देवेन्द्रकुमार जैन 15 अगस्त, 19 11 उषा नगर, इन्दौर-425 009

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