Book Title: Lonkashah Mat Samarthan
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 13
________________ ___ [12] ****************************************** अनुशीलन शुरू किया तो ज्ञात हुआ कि प्रभु महावीर द्वारा प्ररूपित आगम वाणी में साधु का आचार विचार क्या है? और वर्तमान का साधु कहलाने वाले वर्ग का आचार-विचार एक दम उससे उल्टा है, शिथिलता, स्वच्छन्दा, स्वार्थपरता धर्म के नाम पर हिंसा इस वर्ग में अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी है। वह स्थिति धर्मप्राण लोकाशाह से देखी नहीं गई और इसमें सुधार लाने का शंखनाद किया। आपने दृढ़ता पूर्वक प्रण किया कि “मैं अपने जीते जी जिन मार्ग को इस अवनत अवस्था से अवश्य पार कर शुद्ध स्वरूप में लाऊँगा और शुद्ध जैनत्व का प्रचार कर पाखण्ड के पहाड़ को नष्ट करूँगा। इस पुनित कार्य में भले ही मेरे प्राण चले जाय, पर ऐसी स्थिति में शक्ति रहते कभी भी सहन नहीं कर सकता।" तद्नुसार आपने सर्वज्ञ सर्वदर्शी वीतराग प्रभु द्वारा प्ररूपित आगमवाणी की सही प्ररूपणा समाज के सामने रखी। लगे सद्धर्म का प्रचार करने। फलस्वरूप जिनेश्वर भगवान् की आगम रूप वाणी पर श्रद्धा रखने वाले लोगों ने आपको सुना, शंकाओं का सचोट समाधान प्राप्त कर, एक-दो सैकड़ों हजारों नहीं, लाखों मुमुक्षुओं ने भगवान् के मुक्तिदायक सिद्धान्त को स्वीकार किया। सैकड़ों वर्षों से फैला अंधकार इस महान् धर्म क्रांतिकारी लोकाशाह के आह्वान से दूर हुआ। पाखण्ड, शिथिलाचार अंधभक्ति की जड़े हिल गई, फलस्वरूप विरोधियों ने इस महापुरुष की भर पेट निंदा ही नहीं की प्रत्युत अपने भक्तों द्वारा कष्ट दिलाने में कोई कोर कसर नहीं रखी। किन्तु वह महापुरुष जिनशासन की प्रभावना में निरन्तर आगे बढ़ता ही गया। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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